श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा-माधव-चिन्तन’ पर सम्माननीय विद्वानों के विचारभगवान को जानने और उनकी उपलब्धि करने के जो सब उपाय बताये गये हैं, उनमें भक्ति या प्रेम का मार्ग सर्वांपेक्षा सहज है। यह प्रेम अति निर्मल एवं पवित्र है। भक्त या प्रेमिक अपने आराध्य देवता के प्रति सर्वान्तःकरण से भक्ति रूपी अर्घ्य उनके चरणों में निवेदित करता है, उनसे अनन्य प्रेम रखता हैं इहलोक या परलोक के किसी सुख भोग की कामना नहीं करता। भगवान के प्रति ऐकान्तिक अनुराग उसके मन, प्राणों पर अधिकार किये रहता है। भगवान ही उसके प्रेम-सर्वस्व होते हैं। इस भक्ति या प्रेम की शिक्षा देने के लिये भारत में समय-समय पर अनेक अवतारी महापुरुष अवतीर्ण हुए हैं। उन्होंने अपने जीवन दर्शन एवं आचरण द्वारा यह सिद्ध कर दिया है कि मानव-प्रेम का विकास तभी सम्भव होता है, जब वह देवोन्मुख होता है और तब इस प्रेम रूपी पुष्प का सौरभ समस्त जगत् में विकीर्ण होता है। इस प्रेम के कारण समस्त जगत् में प्राणों का संचार होता रहता है। आनन्दमय इस का अंश होने के कारण ही यह समस्त विश्व आनन्दमय है। प्राकृत सुख ब्रह्मानन्द की ही छाया है। भक्ति रस में प्रचार वैष्णवाचार्यों अमर कीर्ति है। अग्नि पुराण में कहा गया है- जो सनातन परम ब्रह्म है, उसका सहज आनन्द कभी-कभी अभिव्यक्त होता है। वैष्णव आचार्यों ने इस आनन्द को ही रस रूप में ग्रहण किया है। लीलावतार भगवान श्रीकृष्ण ही इस भक्ति रस के अक्षय स्त्रोत हैं। व्रज में प्रकट होकर उन्होंने रस-माधुरी की धारा प्रवाहित की थी। उनकी मुरली की सुमधुर ध्वनि में व्रज रस का आस्वादन था। श्रीराधा उनकी हृदिनी शक्ति थी। रमणी-कुल-ललाम राधा का यह दृढ़ प्रत्यय था कि मैं श्रीकृष्ण की सर्वस्व हूँ। भावुक भक्त श्रीहनुमान प्रसाद पोद्दार ने समय-समय पर सुप्रसिद्ध ‘कल्याण’ पत्रिका में श्रीराधा-कृष्ण के रस तत्त्व एवं लीला-माधुरी के सम्बन्ध में जो सब लेख लिखे हैं तथा व्याख्यान-प्रवचन आदि किये हैं, उन्हीं का सुन्दर संकलन ‘श्रीराधा-माधव-चिन्तन’ नामक ग्रन्थ में किया गया है। किंतु इस ग्रन्थ को केवल लेखों एवं प्रवचनों का संग्रह मात्र ही समझना चाहिये। यह ग्रन्थ भक्तिरस-तत्त्व की एक अनुपम निधि है। सम्पूर्ण ग्रन्थ को विभिन्न प्रकरणों में विभाजित करके एक प्रकरण में एक-एक विषय को लिया गया है और उसका सांगोपांग विवेचन सुललित रूप में किया गया है! श्रीराधा, श्रीकृष्ण श्रीराधा-माधव, भाव राज्य तथा लीला-रहस्य, प्रेमतत्त्व, गोपांगना-जैसे विषयों की अवतारणा करके लेखक ने अत्यन्त विशद एवं सरस रूप में उन पर प्रकाश डाला है। विवेचन की शैली इतनी सरल, सुबोध एवं हृदय ग्राही है कि पाठक रसामृत पान करके तृप्त हो जाते हैं। |
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