श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा-माधव-चिन्तन’ पर सम्माननीय विद्वानों के विचारश्रीभाई हनुमान प्रसाद जी पोद्दार की समर्थ लेखनी से जो ग्रन्थरत्न निःसृत हैं, उनसे न केवल हिंदी का साहित्य-भण्डार समृद्ध हुआ है, किंतु मधुर रस के उपासकों को मनोवाच्छित प्रसाद बड़ी स्पृहणीय मात्रा में मिल गया है। विशेषतः ‘श्रीराधा-माधव-चिन्तन’ तो इस पथ के साधकों का अनिवार्य संबल रहना चाहिये। श्रीपोद्दार जी का विस्तृत अध्ययन, गम्भीर चिन्तन और भावपूर्ण साधन त्रिवेणी की तरह इस ग्रन्थ रत्न के पृष्ठों को राधा-माधव के निर्मल उज्ज्वल रस से सिक्त कर रहा है। पारमार्थिक उपयोगिता की दृष्टि से तो यह ग्रन्थ परम उपादेय है ही, परंतु जो साहित्यिक आनन्द के लिये ‘प्रसन्नगम्भीरपदा सरस्वती’ के प्रवाह में प्रवाहन करना चाहते हैं, उन्हें भी यह ग्रन्थ अवश्य देखना चाहिये। मैंने पहले भी श्रीपोद्दार जी के लेख पढ़े हैं और उनके आध्यात्मिक दृष्टकोण से प्रभावित हुआ हूँ। प्रस्तुत सामग्री के कई अंश मैंने कल बड़ी देर तक ध्यानपूर्वक पढ़े। इन लेखों में श्रीपोद्दोर ने अपनी सुबोध और हृदय ग्राही शैली में राधा-कृष्ण-सम्बन्धी जो जानकारी प्रस्तुत की है वह अन्यत्र दुर्लभ है। उनके विचार उदार तथा राष्ट्र-कल्याणकारी हैं। श्रीराधा और श्रीकृष्ण के सम्बन्ध में जो भ्रान्तियाँ समाज में फैली हुई हैं, उनका बड़े सुन्दर ढंग से पोद्दार जी ने निराकण किया है। इधर एक मित्र की सम्पादित रास-पच्चाध्यायी को ध्यान पूर्वक पढ़ने का मुझे अवसर मिला था। यह सारा प्रकरण रहस्यात्मक है और खेद है कि अयोग्य लोगों के हाथ में पहुँच कर यह अनर्थ कर सकता है। ईश्वर करे पोद्दार जी द्वारा प्रसारित यह सामग्री सब भक्तजनों के पास पहुँच सके। |
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