श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा-माधव-चिन्तन’ पर सम्माननीय विद्वानों के विचारसाहित्य में राधा को लेकर कई विवाद हैं, उनका जिस योग्यता और उत्तमता से निराकण ‘राधा-माधव-चिन्तन’ में किया गया है, वह वास्तव में हृदय को स्पर्श करने वाला है। श्रीभाई जी अनुभवी और ज्ञानी पुरुष हैं, उनकी यह कृति निःसंन्देह महत्त्वपूर्ण है। मैं पढ़ गया हूँ। मुझे प्रिय लगी है। लेखक और प्रकाशक दोनों ही इस उत्तम रचना के लिये अभिनन्दन के अधिकारी हैं। मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें। आद्योपान्त मनोयोग पूर्वक पुस्तक पढ़ लेने के बाद मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि पुस्तक के सात प्रकरण राधारानी के पगनृपुरों की झनकार के सात स्वर हैं, जिनसे अनवरत राधा-रस झर रहा है। सम्मान्य भाई जी ने लोक कल्याण के लिये अपनी साधना और भावना से जिस वांगमयी सुधा की सृष्टि की है, उसे पानकर निःसंदेह अमृतत्त्व प्राप्त किया जा सकता है। राधा-माधव-चिन्तन खाँड की रोटी है, जिधर से तोड़ा जाय उधर ही मिठास- भरी है। श्रीभगवान परम मधुर हैं। उनकी मधुरिमा निरतिशय है। यद्यपि उस मधु का प्राचीन औपनिषदी मधु-विद्या में संकेत मिलता है तथापि भावुक उपासकों की अर्वाचीन रचना-कमलावली में वह गुह्य मधु मकरन्द-रूप में विराजमान है, जिसका पान वस्तुतः त्रिगुणमय रस-विरत भक्त-जन-चजरीक ही कर सकते हैं। पोद्दारजी का श्रीराधा-माधव-चिन्तन सम्बन्धी साहित्य उक्त मकरन्द से ओत-प्रोत मगंल-कलश है। भाषा और भाव दोनों की दृष्टि से यह रचना विशुद्ध है। इस सत्साहित्य के सर्जन से पोद्दार जी ने जहाँ हिंदी में सत्साहित्य की श्रीवृद्धि की है, वहाँ भावुक भक्तों की भावना को भी एक अभिनव संबल प्रदान किया है। इस रचना का विश्व में विपुल प्रसार हो। |
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज