श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
श्रीराधा-माधव-चिन्तन’ पर सम्माननीय विद्वानों के विचारमैंने उस पुस्तक को आदि से अन्त तक पढ़ा और उससे लाभान्वित हुआ। पुस्तक भाई जी के व्यापक अध्ययन, गंभीर चिन्तन और गहन रसानुभूति का परिणाम है। आशा है, जैसा मैं उससे लाभान्वित हुआ हूँ, वैसे ही और सहस्रों लोग होंगे। वैसे मेरा विचार तो यह है कि लाखों में कोई एक राधा-माधव-भक्ति का रहस्य समझने का अधिकारी होता है, पर इस महान कृति से बहुत लोगों का पथ-प्रदर्शन होगा। लक्ष्य पर तो वही पहुँचेगा, जिसको राधा-माधव स्वयं अपनी कृपा से पहुँचा देंगे।
‘श्रीराधा-माधव-चिन्तन’ जैसी रचना श्रीहनुमानप्रसादजी- जैसे भक्त और चिन्तक से ही सम्भव है। उन्होंने भक्तजनों का अमित उपकार किया है।
भाई जी का यह चिन्तन एक सामान्य चिन्तन नहीं, अपितु एक साक्षात् दर्शन है। यह पाठक को दार्शनिक दृष्टि से सम्पन्न कर उस भाव-भूमिका में पहुँचा देता है, जहाँ हठात् प्रत्येक के हृदय में गोपी वृत्ति को पाने की उत्कट अभिलाषा उद्बुद्ध हो जाती है। व्रज रस के आस्वादन और भागवत-सिद्धान्त को पूर्णतया हृदयंगम करने के लिये यह साहित्य सदा ही अद्वितीय रहेगा। अलौकिक प्रेम के इस रहस्य को प्रकटित करने के लिये मैं आपकी (गोस्वामी जी की भूमिका) भूमिका में उल्लिखित इस वाक्य से सर्वथा सहमत हूँ कि ‘यों कहें तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी कि (इस रहस्य का प्रकाशन) ग्रन्थकार के हृदय में स्थित होकर स्वयं उन्होंने (राधा-माधव ने) इसको लिखा है।’ आपने इस साहित्य से मुझे कृतार्थ किया, तदर्थ आपको कोटिशः धन्यवाद। इसके पढ़ने के बाद आत्म समर्पण-सम्बन्धी एक नवप्रकाश से मैं प्रकाशित हो गया हूँ। |
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज