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एक लालसा
घर-परिवार सब का मोह छोड़कर, सब ओर से मन मोड़कर वह कहता है-
- बन-बन फिरना बेहतर हमको, रतन-भवन नहिं भावै है।
- लता तले पड़े रहने में सुख, नाहिंन सेज सुह्यावै है।।
- सोना कर घर सीस भला, अति तकिया स्याल न आवै है।
- ‘ललितकिसोरी’ नाम हरी का जपि-जपि मन सचु पावै है।
- अब बिलंब जनि करौ लाड़िली! कृपा-दृष्टि टुक हेरौ।
- जमुना-पुलिन गलिन गहबर की बिचरूँ साँझ सबेरौ।।
- निसिदिन निरखौं जुगल-माधुरी, रसिकन ते भट-भेरौ।
- ‘ललितकिसोरी’ तन मन आकुल श्रीबन चहत बसेरौ।।
एक नन्दनन्दन प्यारे व्रजचन्द्र की झाँकी निरखने के सिवा उसके मन में फिर कोई लालसा ही नहीं रह जाती, वह अधीर होकर अपनी लालसा प्रकट करता है-
- एक लालसा मन महँ धारूँ।
- बंसीबट कालिंदी-तट नट-नागर नित्य निहारूँ।।
- मुरली-तान मनोहर सुनि-सुनि तनु-सुधि सकल बिसारूँ।
- छिन-छिन निरखि झलक अँग-अंगनि पुलकित तन-मन वारूँ।
- रिझऊँ स्याम मनाइ गाइ गुन, गुंज-माल गल डारूँ।
- परमानंद भूलि सगरौ जग, स्यामहि स्याम पुकारूँ।।
बस, यही तीव्रतम शुभेच्छा है!
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