श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
‘मधुर स्वर सुना दो!’तुम भक्तों के परम सखा हो; जो जगत् का सारा भरोसा छोड़कर केवल तुम्हारी दया पर ही निर्भर करते हैं, उनकी तुम रक्षा करते हो। हम तो संसारासक्त भक्तिहीन दीन प्राणी हैं किस साहस से तुमसे उद्धार के लिये प्रार्थना करें? परंतु नाथ! तुम दीनबन्धु हो, तुम अनाथ-नाथ हो, तुम अकारण ही कृपा करते हो। सुना है कि तुम केवल दुःखियों और दुराचारियेां का दया या दमन के द्वारा परित्राण करने के लिये ही जगत् में बार-बार अवतार लेते हो। प्रभो! हम-सा दुःखी और दुराचारी और कौन होगा? दुःखियों के दुःख और पतितों के पातक तुम्हारे सिवा कौन नाश करेगा? तुम्हीं तो अशरण और अनाथ के नाथ हो। तुम्हीं तो अगति के गति और निर्बल के बल हो। तुम्हीं तो स्त्रेहमयी जननी की भाँति अपनी दुर्गुण संतान से स्त्रेह करने वाले हो। प्रभो! बताओ, तुम्हें छोड़कर इस विपत्तिकं से निकालने के लिये किसको पुकारें? ऐसा कौन है, जो तुम्हारी तरह बिना ही हेतु दया करता है? प्रभो! हमें इस दुःख-सागर से पार करो, बचाओ। नाथ! तुम्हीं ने पापा नल से संतप्त पतित अजामिल को एक ही नाम से प्रसन्न होकर पावन कर दिया था, तुम्हीं ने जल में अनाथ की भाँति डूबते हुए गजेन्द्र की दौड़कर रक्षा की थी और तुम्हीं ने भरी सभा में विपद्ग्रस्त द्रौपदी की लाज को बचाया था। इसलिये हे दीनबन्धु! अब तुम अपनी ओर देखकर ही हमें अपनाओ और हे नाथ! दया करके एक बार तुम्हारी उस मोहिनी मुरली का वह उन्मादकारी मधुर स्वर सुना दो, जिसने व्रजवनिताओं को श्रीकृष्ण गत प्राणा बना दिया था! |
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