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‘नादब्रह्म - मोहन की मुरली’
भक्त रसखान कहते हैं-
- कौन ठगौरी भरी हरि आजु, बजाई है बाँसुरिया रँगभीनी।
- तान सुनी जिनाहीं, तिनहीं तबहीं कुल-लाज बिदा करि दीनी।।
- घूमै घरी-घरी नंद के द्वार, नवीनी कहा कहूँ बात प्रबीनी।
- या ब्रजमंडल में रसखानि सु कौन भटू जो लटू नहिं कीनी।।
- बजी सुबजी रसखानि बजी, सुनि कै अब गोकुल-बाल न जीहै।
- न जीहै कदाचित कानन कौं, अब कान परी वह तान अजी है।।
- अजी है, बचाऔ, उपाय नहीं, अबला पर आनि कै सैन सजी है।
- सजी है हमारौ कहा बस है, जब बैरिन बाँसुरी फेरि बजी है।।
- आजु अली एक गोपलली भई बाबरि, नैकु न अंग सँभारै।
- मातु अघात न देवन पूजत, सासु सयानि-सयानि पुकारै।।
- यौं रसखानि फिरी सगरे ब्रज, आन कुआन उपाय बिचारै।
- कोउ न कान्हर के कर तें वह बैरन बाँसुरिया गहि डारै।।
- ऐ सजनी बह नंदकुमार सु या बन धेनु चराइ रह्यौ है।
- मोहनी तानन गोधन-गायन बेनु बजाइ रिझाइ रह्यौ है।।
- ताही समै कुछ टोनौ करौ, रसखानि हिये सु समाइ रह्यौ है।
- कोउ न काहु का कानि करै, सिगरौ ब्रज बीर! बिकाइ रह्यौ है।।
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