श्रीराधा माधव चिन्तन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
‘तीन मधुर प्रसंग’(3)एक बार श्रीराधाजी अपनी सखियों सहित सिद्धाश्रम नामक तीर्थ में स्न्नान करने गयीं। उसी तीर्थ में भगवान श्रीकृष्ण भी अपनी सोलह हजार रानियों और रुक्मिणी, सत्यभामा आदि आठों पटरानियों सहित पधारे। भगवान की रानियाँ और पटरानियाँ भगवान के श्रीमुख से सदा ही श्रीराधाजी एवं श्रीगोपियों के प्रेम की प्रशंसा सुना करती थीं। आज शुभ अवसर जानकर भगवान की महिषियों ने श्रीराधाजी से मिलने की इच्छा प्रकट की और भगवान की आज्ञा लेकर उनके साथ सब श्रीराधाजी से मिलने गयीं। समस्त सखियों सहित श्रीराधाजी को उन सबके दर्शन से बड़ा ही सुख मिला। पश्चात श्रीराधा जी ने भगवान की समस्त पटरानियों का बडा सत्कार किया। बातचीत में उन्होंने कहा, ‘बहिनो! चन्द्रमा एक होता है, परंतु चकोर अनेक होते हैं; सूर्य एक होता है, परंतु नेत्र अनेक होते हैं। इसी प्रकार हमारे प्रियतम भगवान श्रीकृष्ण एक हैं और हम उनकी भक्ता अनेक हैं।
श्रीराधा जी के शील, स्वरूप, सौन्दर्य, गुण और व्यवहार का महिषियों पर बड़ा ही प्रभाव पड़ा। वे आग्रह करके श्रीराधा जी को अपने डेरे पर लायीं और उनका यथा साध्य सबों ने बड़ा ही सत्कार किया। भोजनादि के उपरान्त रात को श्रीराधा जी को भगवान की आज्ञा से श्रीरुक्मिणी–जी ने स्वयं दूध पिलाया। अनेक प्रकार प्रेम संलाप होने के अनन्तर श्रीराधा जी अपने डेरे पर पधार गयीं। भगवान अपने शयनागार में लेटे हुए थे। श्रीरुक्मिणी जी नित्य नियमानुसार वहाँ जाकर भगवान के चरण दबाने बैठीं। चरणों के दर्शन करते ही वे आश्चर्य में डूब गयीं। उन्होंने देखा, भगवान की पूरी चरण स्थली पर फफोले पड़ रहे हैं। श्रीरुक्मिणी ने अपनी सगिंनी सब रानियों को बुलाकर भगवान के चरण दिखाये। सभी चकित और स्तम्भित रह गयीं। भगवान से पूछने का साहस किसी का नहीं। तब श्रीभगवान ने आँखें खोलकर सब रानियों के वहाँ एकत्र होने और यों चकित रह जाने का कारण पूछा। |
संबंधित लेख
क्रमांक | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज