षष्ठ स्कन्ध: द्वादश अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: षष्ठ स्कन्ध: द्वादश अध्यायः श्लोक 27-35 का हिन्दी अनुवाद
प्रजापतियों और महर्षियों के साथ देवताओं ने जब देखा कि वृत्रासुर इन्द्र को निगल गया, तब तो वे अत्यन्त दुःखी हो गये तथा ‘हाय-हाय! बड़ा अनर्थ हो गया।’ यों कहकर विलाप करने लगे। बल दैत्य का संहार करने वाले देवराज इन्द्र ने महापुरुष-विद्या (नारायण कवच) से अपने को सुरक्षित कर रखा था और उनके पास योगमाया का बल था ही। इसलिये वृत्रासुर के निगल लेने पर-उसके पेट में पहुँचकर भी वे मरे नहीं। उन्होंने अपने वज्र से उसकी कोख फाड़ डाली और उसके पेट से निकलकर बड़े वेग से उसका पर्वत-शिखर के समान ऊँचा सिर काट डाला। सूर्यादि ग्रहों की उत्तरायण-दक्षिणायनरूप गति में जितना समय लगता है, उतने दिनों में अर्थात् एक वर्ष में वृत्रवध का योग उपस्थित होने पर घूमते हुए उस तीव्र वेगशाली वज्र ने उसकी गरदन को सब ओर से काटकर भूमि पर गिरा दिया। उस समय आकाश में दुन्दुभियाँ बजने लगीं। महर्षियों के साथ गन्धर्व, सिद्ध आदि वृत्रघाती इन्द्र का पराक्रम सूचित करने वाले मन्त्रों से उनकी स्तुति करके बड़े आनन्द के साथ उन पर पुष्पों की वर्षा करने लगे। शत्रुदमन परीक्षित! उस समय वृत्रासुर के शरीर से उसकी आत्मज्योति बाहर निकली और इन्द्र आदि सब लोगों के देखते-देखते सर्वलोकातीत भगवान् के स्वरूप में लीन हो गयी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज