प्रथम स्कन्ध: षष्ठ अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: प्रथम स्कन्धःषष्ठ अध्यायः श्लोक 31-39 का हिन्दी अनुवाद
व्यास जी! आप निष्पाप हैं। आपने मुझसे जो कुछ पूछा था, वह सब अपने जन्म और साधना का रहस्य तथा आपकी आत्मतुष्टि का उपाय मैंने बतला दिया। श्रीसूत जी कहते हैं- शौनकादि ऋषियों! देवर्षि नारद ने व्यास जी से इस प्रकार कहकर जाने की अनुमति ली और वीणा बजाते हुए स्वच्छन्द विचरण करने के लिये वे चल पड़े। अहा! ये देवर्षि नारद धन्य हैं; क्योंकि वे सारंगपाणि भगवान की कीर्ति को अपनी वीणा पर गा-गाकर स्वयं तो आनन्दमग्न होते ही हैं, साथ-साथ इस त्रितापतप्त जगत् को भी आनन्दित करते रहते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ षड्ज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद्—ये सातों स्वर ब्रह्मव्यंजक होने के नाते ही ब्रह्मरूप कहे गये हैं।
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