श्रीमद्भागवत महापुराण पंचम स्कन्ध अध्याय 26 श्लोक 12-17

पंचम स्कन्ध: षड्-विंश अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: पंचम स्कन्ध: षड्-विंश अध्यायः श्लोक 12-17 का हिन्दी अनुवाद


ऐसा ही महारौरव नरक है। इसमें वह व्यक्ति जाता है, जो और किसी की परवा न कर केवल अपने ही शरीर का पालन-पोषण करता है। वहाँ कच्चा मांस खाने वाले रुरु इसे मांस के लोभ से काटते हैं। जो क्रूर मनुष्य इस लोक में पेट पालने के लिये जीवित पशु या पक्षियों को राँधता है, उस हृदयहीन, राक्षसों से भी गये-बीते पुरुष को यमदूत कुम्भीपाक नरक में ले जाकर खौलते हुए तैल में राँधते हैं।

जो मनुष्य इस लोक में माता-पिता, ब्राह्मण और वेद से विरोध करता है, उसे यमदूत कालसूत्र नरक में ले जाते हैं। इसका घेरा दस हजार योजन है। इसकी भूमि ताँबे की है। इसमें जो तपा हुआ मैदान है, वह ऊपर से सूर्य और नीचे से अग्नि के दाह से जलता रहता है। वहाँ पहुँचाया हुआ पापी जीव भूख-प्यास से व्याकुल हो जाता है और उसका शरीर बाहर-भीतर से जलने लगता है। उसकी बेचैनी यहाँ तक बढ़ती है कि वह कभी बैठता है, कभी लेटता है, कभी छटपटाने लगता है, कभी खड़ा होता है और कभी इधर-उधर दौड़ने लगता है। इस प्रकार उस नर-पशु के शरीर में जितने रोम होते हैं, उतने ही हजार वर्ष तक उसकी यह दुर्गति होती रहती है।

जो पुरुष किसी प्रकार की आपत्ति न आने पर भी अपने वैदिक मार्ग को छोड़कर अन्य पाखण्डपूर्ण धर्मों का आश्रय लेता है, उसे यमदूत असिपत्रवन नरक में ले जाकर कोड़ों से पीटते हैं। जब मार से बचने के लिये वह इधर-उधर दौड़ने लगता है, तब उसके सारे अंग तालवन के तलवार के समान पैने पत्तों से, जिनमें दोनों ओर धारें होती हैं, टूक-टूक होने लगते हैं। तब वह अत्यन्त वेदना से ‘हाय, मैं मरा!’ इस प्रकार चिल्लाता हुआ पद-पद पर मुर्च्छित होकर गिरने लगता है। अपने धर्म को छोड़कर पाखण्ड मार्ग में चलने से उसे इस प्रकार अपने कुकर्म का फल भोगना पड़ता है।

इस लोक में जो पुरुष राजा या राजकर्मचारी होकर किसी निरपराध मनुष्य को दण्ड देता है अथवा ब्राह्मण को शरीर दण्ड देता है, वह महापापी मरकर सूकरमुख नरक में गिरता है। वहाँ जब महाबली यमदूत उसके अंगों को कुचलते हैं, तब वह कोल्हू में पेरे जाते हुए गन्नों के समान पीड़ित होकर, जिस प्रकार इस लोक में उसके द्वारा सताये हुए निरपराध प्राणी रोते-चिल्लाते थे, उसी प्रकार कभी आर्त स्वर से चिल्लाता और कभी मुर्च्छित हो जाता है। जो पुरुष इस लोक में खटमल आदि जीवों की हिंसा करता है, वह उनसे द्रोह करने के कारण अन्धकूप नरक में गिरता है। क्योंकि स्वयं भगवान् ने ही रक्तपानादि उनकी वृत्ति बना दी है और उन्हें उसके कारण दूसरों को कष्ट पहुँचने का ज्ञान भी नहीं है; किन्तु मनुष्य की वृत्ति भगवान् ने विधि-निषेधपूर्वक बनायी है और उसे दूसरों के कष्ट का ज्ञान भी है। वहाँ वे पशु, मृग, पक्षी, साँप आदि रेंगने वाले जन्तु, मच्छर, जूँ, खटमल और मक्खी आदि जीव-जिनसे उसने द्रोह किया था-उसे सब ओर से काटते हैं। इससे उसकी निद्रा और शान्ति भंग हो जाती है और स्थान न मिलने पर भी वह बेचैनी के कारण उस घोर अन्धकार में इस प्रकार भटकता रहता है, जैसे रोगग्रस्त शरीर में जीव छटपटाता करता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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