श्रीमद्भागवत महापुराण पंचम स्कन्ध अध्याय 24 श्लोक 26-31

पंचम स्कन्ध: चतुर्विंश अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: पंचम स्कन्ध: चतुर्विंश अध्यायः श्लोक 26-31 का हिन्दी अनुवाद


बड़े महानुभाव थे। मुझ पर तो न भगवान् की कृपा ही है और न मेरी वासनाएँ ही शान्त हुई हैं; फिर मेरे-जैसा कौन पुरुष उनके पास पहुँचने का साहस कर सकता है?

राजन्! इस बलि का चरित हम आगे (अष्टम स्कन्ध में) विस्तार से कहेंगे। अपने भक्तों के प्रति भगवान् का हृदय दया से भरा रहता है। इसी से अखिल जगत् के परम पूजनीय गुरु भगवान् नारायण हाथ में गदा लिये सुतल लोक में राजा बलि के द्वार पर सदा उपस्थित रहते हैं। एक बार जब दिग्विजय करता हुआ घमंडी रावण वहाँ पहुँचा, तब उसे भगवान् ने अपने पैर के अँगूठे की ठोकर से ही लाखों योजन दूर फेंक दिया था।

सुतल लोक से नीचे तलातल है। वहाँ त्रिपुराधिती दानवराज मय रहता है। पहले तीनों लोको को शान्ति प्रदान करने के लिये भगवान् शंकर ने उसके तीनों पुर भस्म कर दिये थे। फिर उन्हीं की कृपा से उसे यह स्थान मिला। वह मायावियों का परम गुरु है और महादेव जी के द्वारा सुरक्षित है, इसलिये उसे सुदर्शन चक्र से भी कोई भय नहीं है। वहाँ के निवासी उसका बहुत आदर करते हैं। उसके नीचे महातल में कद्रु से उत्पन्न हुए अनेक सिरों वाले सर्पों का क्रोधवश नामक एक समुदाय रहता है। उनमें कुहक, तक्षक, कालिय और सुषेण आदि प्रधान हैं। उनके बड़े-बड़े फन हैं। वे सदा भगवान् के वाहन पक्षिराज गरुड़ जी से डरते रहते हैं; तो भी कभी-कभी अपने स्त्री, पुत्र, मित्र और कुटुम्ब के संग से प्रमत्त होकर विहार करने लगते हैं।

उसके नीचे रसातल में पणि नाम के दैत्य और दानव रहते हैं। ये निवातकवच, कालेय और हिरण्यपुरवासी भी कहलाते हैं। इनका देवताओं से विरोध है। ये जन्म से ही बड़े बलवान् और महान् साहसी होते हैं। किन्तु जिनका प्रभाव सम्पूर्ण लोकों में फैला हुआ है, उन श्रीहरि के तेज से बलाभिमान चूर्ण हो जाने के कारण ये सर्पों के समान लुक-छिपकर रहते हैं तथा इन्द्र की दूती सरमा के कहे हुए मन्त्रवर्णरूप[1] वाक्य के कारण सर्वदा इन्द्र से डरते रहते हैं।

रसातल के नीचे पाताल है। वहाँ शंख, कुलिक, महाशंख, श्वेत, धनजंय, ध्रितराष्ट्र, शंखचूड़, कम्बल, अश्वतर और देवदत्त आदि बड़े क्रोधी और बड़े-बड़े फनों वाले नाग रहते हैं। इनमें वासुकि प्रधान हैं। उनमें से किसी के पाँच, किसी के सात, किसी के दस, किसी के सौ और किसी के हजार सिर हैं। उनके फनों की दमकती हुई मणियाँ अपने प्रकाश से पाताल लोक का सारा अन्धकार नष्ट कर देती हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. एक कथा आती है कि जब पणि नामक दैत्यों ने पृथ्वी को रसातल में छिपा लिया, तब इन्द्र ने उसे ढूँढने के लिये सरमा नाम की एक दूती को भेजा था। सरमा से दैत्यों ने सन्धि करनी चाही, परन्तु सरमा ने सन्धि न करके इन्द्र की स्तुति करते हुए कहा था- –‘हता इन्द्रेण पणयः शयध्वम्’ (हे पणिगण! तुम इन्द्र के हाथ से मरकर पृथ्वी पर सो जाओ, इसी शाप के कारण उन्हें सदा इन्द्र का डर लगा रहता है।

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