पंचम स्कन्ध: त्रयोविंश अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: पंचम स्कन्ध: त्रयोविंश अध्यायः श्लोक 6-9 का हिन्दी अनुवाद
शतभिषा और ज्येष्ठा-ये दो नक्षत्र क्रमशः दाहिने और बायें कंधों की जगह हैं। इसकी ऊपर की थूथनी में अगस्त्य, नीचे की ठोड़ी में नक्षत्ररूप यम, मुखों में मंगल, लिंगप्रदेश में शनि, कुकुद् में बृहस्पति, छाती में सूर्य, हृदय में नारायण, मन में चन्द्रमा, नाभि में शुक्र, स्तनों में अश्विनीकुमार, प्राण और अपान में बुध, गले में राहु, समस्त अंगों में केतु और रोमों में सम्पूर्ण तारागण स्थित हैं। राजन्! यह भगवान् विष्णु का सर्वदेवमय स्वरूप है। इसका नित्यप्रति सायंकाल के समय पवित्र और मौन होकर दर्शन करते हुए चिन्तन करना चाहिये तथा इस मन्त्र का जप करते हुए भगवान् की स्तुति करनी चाहिये- ‘सम्पूर्ण ज्योतिर्गणों के आश्रय कालचक्र स्वरूप, सर्वदेवाधिपति परमपुरुष परमात्मा का हम नमस्कारपूर्वक ध्यान करते हैं’। ग्रह, नक्षत्र और ताराओं के रूप में भगवान् का आधिदैविक रूप प्रकाशित हो रहा है; वह तीनों समय उपर्युक्त मन्त्र का जप करने वाले पुरुषों के पाप नष्ट कर देता है। जो पुरुष प्रातः, मध्याह्न और सायं-तीनों काल उनके इस आधिदैविक स्वरूप का नित्यप्रति चिन्तन और वन्दन करता है, उसके उस समय किये हुए पाप तुरन्त नष्ट हो जाते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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