श्रीमद्भागवत महापुराण पंचम स्कन्ध अध्याय 15 श्लोक 11-16

पंचम स्कन्ध: पञ्चदशं अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: पंचम स्कन्ध: पञ्चदशं अध्यायः श्लोक 11-16 का हिन्दी अनुवाद


उन्हें कोई कामना न थी, तब भी वेदोक्त कर्मों ने उनको सब प्रकार के भोग दिये, राजाओं ने युद्ध स्थल में उनके बाणों से सत्कृत होकर नाना प्रकार की भेंटें दीं तथा ब्राह्मणों ने दक्षिणादि धर्म से सन्तुष्ट होकर उन्हें परलोक में मिलने वाले अपने धर्मफल का छठा अंश दिया। उनके यज्ञ में बहुत अधिक सोमपान करने से इन्द्र उन्मत्त हो गये थे, तथा उनके अत्यन्त श्रद्धा तथा विशुद्ध और निश्चल भक्तिभाव से समर्पित किये हुए यज्ञफल को भगवान् यज्ञपुरुष से साक्षात् प्रकट होकर ग्रहण किया था। जिनके तृप्त होने से ब्रह्मा जी से लेकर देवता, मनुष्य, पशु-पक्षी, वृक्ष एवं तृणपर्यन्त सभी जीव तत्काल तृप्त हो जाते हैं-वे विश्वात्मा श्रीहरि नित्य तृप्त होकर भी राजर्षि गय के यज्ञ के तृप्त हो गये थे। इसलिये उनकी बराबरी कोई दूसरा व्यक्ति कैसे कर सकता है?

महाराज गय के गयन्ती के गर्भ से चित्ररथ, सुगति और अवरोधन नामक तीन पुत्र हुए। उनमें चित्ररथ की पत्नी ऊर्णा से सम्राट् का जन्म हुआ। सम्राट् के उत्कला से मरीचि और मरीचि के बिन्दुमती से बिन्दुमान् नामक पुत्र हुआ। उसके सरघा से मधु, मधु के सुमना से वीरव्रत और वीरव्रत के भोजा से मन्थु और प्रमन्थु नाम के दो पुत्र हुए। उनमें से मन्थु के सत्या के गर्भ से भौवन, भौवन के दूषणा के उदर से त्वष्टा, त्वष्टा के विरोचना से विरज और विरज के विषूची नाम की भार्या से शतचित् आदि सौ पुत्र और एक कन्या का जन्म हुआ। विरज के विषय में यह श्लोक प्रसिद्ध है- ‘जिस प्रकार भगवान् विष्णु देवताओं की शोभा बढ़ाते हैं, उसी प्रकार इस प्रियव्रत वंश को इसमें सबसे पीछे उत्पन्न हुए राजा विरज ने अपने सुयश से विभूषित किया था’।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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