श्रीमद्भागवत महापुराण पंचम स्कन्ध अध्याय 12 श्लोक 9-16

पंचम स्कन्ध: द्वादश अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: पंचम स्कन्ध: द्वादश अध्यायः श्लोक 9-16 का हिन्दी अनुवाद


इस प्रकार ‘पृथ्वी’ शब्द का व्यवहार भी मिथ्या ही है; वास्तविक नहीं है; क्योंकि यह अपने उपादान कारण सूक्ष्म परमाणुओं में लीन हो जाती है और जिनके मिलने से पृथ्वीरूप कार्य की सिद्धि होती है, वे परमाणु अविद्यावश मन से ही कल्पना किये हुए हैं। वास्तव में उनकी भी सत्ता नहीं है। इसी प्रकार और भी जो कुछ पतला-मोटा, छोटा-बड़ा, कार्य-कारण तथा चेतन और अचेतन आदि गुणों से युक्त द्वैत-प्रपंच है-उसे भी द्रव्य, स्वभाव, आशय, काल और कर्म आदि नामों वाली भगवान् की माया का ही कार्य समझो।

विशुद्ध परमार्थरूप, अद्वितीय तथा भीतर-बाहर के भेद से रहित परिपूर्ण ज्ञान ही सत्य वस्तु है। वह सर्वान्तर्वर्ती और सर्वथा निर्विकार है। उसी का नाम ‘भगवान्’ है और उसी को पण्डितजन ‘वासुदेव’ कहते हैं।

रहूगण! महापुरुषों के चरणों की धूलि से अपने को नहलाये बिना केवल तप, यज्ञादि वैदिक कर्म, अन्नादि के दान, अतिथि सेवा, दीन सेवा आदि गृहस्थोचित, धर्मानुष्ठान, वेदाध्ययन अथवा जल, अग्नि या सूर्य की उपासना आदि किसी भी साधन से यह परमात्मज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता। इसका कारण यह है कि महापुरुषों के समाज में सदा पवित्रकीर्ति श्रीहरि के गुणों की चर्चा होती रहती है, जिससे विषयवार्ता तो पास ही नहीं फटकने पाती और जब भगवत्कथा का नित्यप्रति सेवन किया जाता है, तब वह मोक्षाकांक्षी पुरुष की शुद्ध बुद्धि को भगवान् वासुदेव में लगा देती है।

पूर्वजन्म में मैं भरत नाम का राजा था। एहिक और पारलौकिक दोनों प्रकार के विषयों से विरक्त होकर भगवान् की आराधना में ही लगा रहता था, तो भी एक मृग में आसक्ति हो जाने से मुझे परमार्थ से भ्रष्ट होकर अगले जन्म में मृग बनना पड़ा। किन्तु भगवान् श्रीकृष्ण की आराधना के प्रभाव से उस मृगयोनि में भी मेरी पूर्वजन्म की स्मृति लुप्त नहीं हुई। इसी से अब मैं जनसंसर्ग से डरकर सर्वदा असंग भाव से गुप्तरूप से ही विचरता रहता हूँ। सारांश यह है कि विरक्त महापुरुषों के सत्संग से प्राप्त ज्ञानरूप खड्ग के द्वारा मनुष्य को इस लोक में ही अपने मोह बन्धन को काट डालना चाहिये। फिर श्रीहरि की लीलाओं के कथन और श्रवण से भगवत्स्मृति बनी रहने के कारण वह सुगमता से ही संसारमार्ग को पार करके भगवान् को प्राप्त कर सकता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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