श्रीमद्भागवत महापुराण नवम स्कन्ध अध्याय 8 श्लोक 25-31

नवम स्कन्ध: अथाष्टमोऽध्याय: अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: नवम स्कन्ध: अष्टम अध्यायः श्लोक 25-31 का हिन्दी अनुवाद


माया, उसके गुण और गुणों के कारण होने वाले कर्म एवं कर्मों के संस्कार से बना हुआ लिंग शरीर आप में है ही नहीं। न तो आपका नाम है और न तो रूप। आप में न कार्य है और न तो कारण। आप सनातन आत्मा हैं। ज्ञान का उपदेश करने के लिये ही आपने यह शरीर धारण कर रखा है। हम आपको नमस्कार करते हैं।

प्रभो! यह संसार आपकी माया की करामात है। इसको सत्य समझकर काम, लोभ, ईर्ष्या और मोह से लोगों का चित्त, शरीर तथा घर आदि में भटकने लगता है। लोग इसी के चक्कर में फँसे जाते हैं। समस्त प्राणियों के आत्मा प्रभो! आज आपके दर्शन से मेरे मोह की वह दृढ़ फाँसी कट गयी जो कामना, कर्म और इन्द्रियों को जीवनदान देती है।

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! जब अंशुमान् ने भगवान् कपिल मुनि के प्रभाव का इस प्रकार गान किया, तब उन्होंने मन-ही-मन अंशुमान् पर बड़ा अनुग्रह किया और कहा।

श्रीभगवान ने कहा- ‘बेटा! यह घोड़ा तुम्हारे पितामह का यज्ञ पशु है। इसे तुम ले जाओ। तुम्हारे जले हुए चाचाओं का उद्धार केवल गंगाजल से होगा, और कोई उपाय नहीं है’।

अंशुमान ने बड़ी नम्रता से उन्हें प्रसन्न करके उनकी परिक्रमा की और वे घोड़े को ले आये। सगर ने उस यज्ञ पशु के द्वारा यज्ञ की शेष क्रिया समाप्त की। तब राजा सगर ने अंशुमान को राज्य का भार सौंप दिया और वे स्वयं विषयों से निःस्पृह एवं बन्धन मुक्त हो गये। उन्होंने महर्षि और्व के बतलाये हुए मार्ग से परमपद की प्राप्ति की।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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