श्रीमद्भागवत महापुराण नवम स्कन्ध अध्याय 22 श्लोक 18-32

नवम स्कन्ध: द्वाविंशोऽध्याय: अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: नवम स्कन्ध: द्वाविंश अध्यायः श्लोक 18-32 का हिन्दी अनुवाद


जब कलियुग में चन्द्र वंश का नाश हो जायेगा, तब सत्ययुग के प्रारम्भ में वे फिर उसकी स्थापना करेंगे। शान्तनु के छोटे भाई बाह्लीक का पुत्र हुआ सोमदत्त। सोमदत्त के तीन पुत्र हुए- भूरि, भूरिश्रवा और शल। शान्तनु के द्वारा गंगाजी के गर्भ से नैष्ठिक ब्रह्मचारी भीष्म का जन्म हुआ। वे समस्त धर्मज्ञों के सिरमौर, भगवान् के परम प्रेमी भक्त और परम ज्ञानी थे। वे संसार के समस्त वीरों के अग्रगण्य नेता थे। औरों की तो बात ही क्या, उन्होंने अपने गुरु भगवान् परशुराम को भी युद्ध में सन्तुष्ट कर दिया था।

शान्तनु के द्वारा दाशराज की कन्या[1] के गर्भ से दो पुत्र हुए- चित्रांगद और विचित्रवीर्य। चित्रांगद और चित्रांगद नामक गन्धर्व ने मार डाला। इसी दाशराज की कन्या सत्यवती से पराशर जी के द्वारा मेरे पिता, भगवान् के कलावतार स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास जी अवतीर्ण हुए थे। उन्होंने वेदों की रक्षा की।

परीक्षित! मैंने उन्हीं से इस श्रीमद्भागवत पुराण का अध्ययन किया था। यह पुराण परम गोपनीय-अत्यन्त रहस्यमय है। इसी से मेरे पिता भगवान् व्यास जी ने अपने पैल आदि शिष्यों को इसका अध्ययन नहीं कराया, मुझे ही इसके योग्य अधिकारी समझा। एक तो मैं उनका पुत्र था और दूसरे शान्ति आदि गुण भी मुझमें विशेष रूप से थे। शान्तनु के दूसरे पुत्र विचित्रवीर्य ने काशिराज की कन्या अम्बिका और अम्बालिका से विवाह किया। उन दोनों को भीष्म जी स्वयंर से बलपूर्वक ले आये थे। विचित्रवीर्य अपनी दोनों पत्नियों में इतना आसक्त हो गया कि उसे राजयक्ष्मा रोग हो गया और उसकी मृत्यु हो गयी। माता सत्यवती के कहने से भगवान व्यास जी ने अपने सन्तानहीन भाई की स्त्रियों से धृतराष्ट्र और पाण्डु दो पुत्र उत्पन्न किये। उनकी दासी से तीसरे पुत्र विदुर जी हुए।

परीक्षित! धृतराष्ट्र की पत्नी थी गान्धारी। उसके गर्भ से सौ पुत्र हुए, उनमें सबसे बड़ा था दुर्योधन। कन्या का नाम था दुःशला। पाण्डु की पत्नी थी कुन्ती। शापवश पाण्डु स्त्री-सहवास नहीं कर सकते थे। इसलिये उनकी पत्नी कुन्ती के गर्भ से धर्म, वायु और इन्द्र के द्वारा क्रमशः युधिष्ठिर, भीमसेन और अर्जुन नाम के तीन पुत्र उत्पन्न हुए। ये तीनों-के-तीनों महारथी थे। पाण्डु की दूसरी पत्नी का नाम था माद्री। दोनों अश्विनीकुमारों के द्वारा उसके गर्भ से नकुल और सहदेव का जन्म हुआ। परीक्षित! इन पाँच पाण्डवों के द्वारा द्रौपदी के गर्भ से तुम्हारे पाँच चाचा उत्पन्न हुए। इसमें से युधिष्ठिर के पुत्र का नाम था प्रतिविन्ध्य, भीमसेन का पुत्र था श्रुतसेन, अर्जुन का श्रुतकीर्ति, नकुल का शतानीक और सहदेव का श्रुतकर्मा।

इसके सिवा युधिष्ठिर के पौरवी नाम की पत्नी से देवक और भीमसेन के हिडिम्बा से घटोत्कच और काली से सर्वगत नाम के पुत्र हुए। सहदेव के पर्वतकुमारी विजया से सुहोत्र और नकुल के करेणुमती से निरमित्र हुआ। अर्जुन द्वारा नागकन्या उलूपी के गर्भ से इरावान और मणिपुर नरेश की कन्या से बभ्रुवाहन का जन्म हुआ। बभ्रुवाहन अपने नाना का ही पुत्र माना गया, क्योंकि पहले से ही यह बात तय हो चुकी थी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यह कन्या वास्तव में उपरिचरवसु के वीर्य से मछली के गर्भ से उत्पन्न हुई थी, किन्तु दाशों (केवटों) के द्वारा पालित होने से वह केवटों की कन्या कहलायी।

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