द्वादश स्कन्ध: चतुर्थ अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: द्वादश स्कन्ध: चतुर्थ अध्याय: श्लोक 35-43 का हिन्दी अनुवाद
परीक्षित! मैंने तुमसे चार प्रकार के प्रलय का वर्णन किया; उनके नाम हैं- नित्य प्रलय, नैमित्तिक प्रलय, प्राकृतिक प्रलय और आत्यन्तिक प्रलय। वास्तव में काल की सूक्ष्म गति ऐसी ही है। हे कुरुश्रेष्ठ! विश्वविधाता भगवान नारायण ही समस्त प्राणियों और शक्तियों के आश्रय हैं। जो कुछ मैंने संक्षेप से कहा है, वह सब उन्हीं की लीला-कथा है। भगवान की लीलाओं का पूर्ण वर्णन तो स्वयं ब्रह्मा जी भी नहीं कर सकते। जो लोग अत्यन्त दुस्तर संसार-सागर से पार जाना चाहते हैं अथवा जो लोग अनेकों प्रकार के दुःख-दावानल से दग्ध हो रहे हैं, उनके लिये पुरुषोत्तम भगवान की लीला-कथारूप रस के सेवन के अतिरिक्त और कोई साधन, कोई नौका नहीं है। ये केवल लीला-रसायन का सेवन करके ही अपना मनोरथ सिद्ध कर सकते हैं। जो कुछ मैंने तुम्हें सुनाया है, यही श्रीमद्भागवत महापुराण है। इसे सनातन ऋषि नर-नारायण ने पहले देवर्षि नारद को सुनाया था और उन्होंने मेरे पिता महर्षि कृष्णद्वैपायन को। महाराज! उन्हीं बदरीवनविहारी भगवान श्रीकृष्णद्वैपायन ने प्रसन्न होकर मुझे इस वेदतुल्य श्रीभागवत सहिंता का उपदेश किया। कुरुश्रेष्ठ! आगे चलकर जब शौनकादि ऋषि नैमिषारण्य क्षेत्र में बहुत बड़ा सत्र करेंगे, तब उनके प्रश्न करने पर पौराणिक वक्ता श्रीसूत जी उन लोगों को इस सहिंता का श्रवण करायेंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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