द्वादश स्कन्ध: द्वितीय अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: द्वादश स्कन्ध: द्वितीय अध्याय श्लोक 12-24 का हिन्दी अनुवाद
परीक्षित! अधिक क्या कहें-कलियुग का अन्त होते-होते मनुष्यों का स्वभाव गधों-जैसा दुःसह बन जायेगा, लोग प्रायः गृहस्थी का भार ढोने वाले और विषयी हो जायेंगे। ऐसी स्थिति में धर्म की रक्षा करने के लिये सत्त्वगुण स्वीकार करके स्वयं भगवान अवतार ग्रहण करेंगे। प्रिय परीक्षित! सर्वव्यापक भगवान विष्णु सर्वशक्तिमान् हैं। वे सर्वस्वरूप होने पर भी चराचर जगत् के शिक्षक-सद्गुरु हैं। वे साधु-सज्जन पुरुषों के धर्म की रक्षा के लिये, उनके कर्म का बन्धन काटकर उन्हें जन्म-मृत्यु के चक्र से छुड़ाने के लिये अवतार ग्रहण करते हैं। उन दिनों शम्भल-ग्राम में विष्णुयश नाम के श्रेष्ठ ब्राह्मण होंगे। उनका हृदय बड़ा उदार एवं भगवद्भक्ति से पूर्ण होगा। उन्हीं के घर कल्कि भगवान अवतार ग्रहण करेंगे। श्रीभगवान ही अष्टसिद्धियों के और समस्त सद्गुणों के एकमात्र आश्रय हैं। समस्त चराचर जगत् के वे ही रक्षक और स्वामी हैं। वे देवदत्त नामक शीघ्रगामी घोड़े पर सवार होकर दुष्टों को तलवार के घाट उतार कर ठीक करेंगे। उनके रोम-रोम से अतुलनीय तेज की किरणें छिटकती होंगी। वे अपने शीघ्रगामी घोड़े से पृथ्वी पर सर्वत्र विचरण करेंगे और राजा के वेष में छिपकर रहने वाले कोटि-कोटि डाकुओं का संहार करेंगे। प्रिय परीक्षित! जब सब डाकुओं का संहार हो चुकेगा, तब नगर की और देश की सारी प्रजा का हृदय पवित्रता से भर जायेगा; क्योंकि भगवान कल्कि के शरीर में लगे हुए अंगरांग का स्पर्श पाकर अत्यन्त पवित्र हुई वायु उनका स्पर्श करेगी और इस प्रकार वे भगवान के श्रीविग्रह की दिव्य गन्ध प्राप्त कर सकेंगे। उनके पवित्र हृदय में सत्त्वमूर्ति भगवान वासुदेव विराजमान होंगे और फिर उनकी सन्तान पहले की भाँति हष्ट-पुष्ट और बलवान् होने लगेगी। प्रजा के नयन-मनोहारी हरि ही धर्म के रक्षक और स्वामी हैं। वे ही भगवान जब कल्कि के रूप में अवतार ग्रहण करेंगे, उसी समय सत्ययुग का प्रारम्भ हो जायेगा और प्रजा की सन्तान-परम्परा स्वयं ही सत्त्वगुण से युक्त हो जायेगी। जिस समय चन्द्रमा, सूर्य और बृहस्पति एक ही समय एक ही साथ पुष्य नक्षत्र के प्रथम पल में प्रवेश करके एक राशि पर आते हैं, उसी समय सत्ययुग का प्रारम्भ होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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