द्वादश स्कन्ध: द्वादश अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: द्वादश स्कन्ध: द्वादश अध्याय: श्लोक 17-35 का हिन्दी अनुवाद
नवें स्कन्ध में मुख्यतः राजवंशों का वर्णन है। इक्ष्वाकु के जन्म-कर्म, वंशविस्तार, महात्मा सुद्युम्न, इला एवं तारा के उपाख्यान-इन सबका वर्णन किया गया है। सूर्य वंश का वृत्तान्त, शशाद और नृग आदि राजाओं का वर्णन, सुकन्या का चरित्र, शर्याति, खट्वांग, मान्धाता, सौभरि, सगर, बुद्धिमान कुकुत्स्थ और कोसलेन्द्र भगवान राम के सर्वपापहारी चरित्र वर्णन भी इसी स्कन्ध में है। तदनन्तर निमि का देह त्याग-और जनकों की उत्पत्ति का वर्णन है। भृगुवंशशिरोमणि परशुराम का क्षत्रिय संहार, चन्द्रवंशी नरपति पुरूरवा, ययाति, नहुष, दुष्यन्तनन्दन भरत, शान्तनु और उनके पुत्र भीष्म आदि की संक्षिप्त कथाएँ भी नवम स्कन्ध में ही हैं। सबके अन्त में ययाति के बड़े लड़के यदु का वंश विस्तार कहा गया है। शौनकादि ऋषियों! इसी यदुवंश में जगत्पति भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार ग्रहण किया था। उन्होंने अनेक असुरों का संहार किया। उनकी लीलाएँ इतनी हैं कि कोई पार नहीं पा सकता। फिर भी दशम स्कन्ध में उनका कुछ कीर्तन किया गया है। वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से उनका जन्म हुआ। गोकुल में नन्दबाबा के घर जाकर बढ़े। पूतना के प्राणों को दूध के साथ पी लिया। बचपन में ही छकड़े को उलट दिया। तृणावर्त, बकासुर एवं वत्सासुर को पीस डाला। सपरिवार धेनुकासुर और प्रलम्बासुर को मार डाला। दावानल से घिरे गोपों की रक्षा की। कालिय नाग का दमन किया। अजगर से नन्दबाबा को छुड़ाया। इसके बाद गोपियों ने भगवान को पतिरूप से प्राप्त करने के लिये व्रत किया और भगवान श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होकर उन्हें अभिमत वर दिया। भगवान ने यज्ञपत्नियों पर कृपा की। उनके पत्नियों-ब्राह्मणों को बड़ा पश्चात् हुआ। गोवर्धन धारण की लीला करने पर इन्द्र और कामधेनु ने आकर भगवान का यज्ञाभिषेक किया। शरद् ऋतु की रात्रियों में व्रजसुन्दरियों के साथ रास-क्रीड़ा की। दुष्ट शंखचूड, अरिष्ट और केशी के वध की लीला हुई। तदनन्तर अक्रूर जी मथुरा से वृन्दावन आये और उनके साथ भगवान श्रीकृष्ण तथा बलराम जी ने मथुरा के लिये प्रस्थान किया। उस प्रसंग पर व्रजसुन्दरियों ने जो विलाप किया था, उसका वर्णन है। राम और श्याम ने मथुरा में जाकर वहाँ की सजावट देखी और कुवलयापीड़ हाथी, मुष्टिक, चाणूर एवं कंस आदि का संहार किया। सान्दीपनि गुरु के यहाँ विद्याध्ययन करके उनके मृत पुत्र को लौटा लाये। शौनकादि ऋषियों! जिस समय भगवान श्रीकृष्ण मथुरा में निवास कर रहे थे, उस समय उन्होंने उद्धव और बलराम जी के साथ यदुवंशियों का सब प्रकार से प्रिय और हित किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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