श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 78 श्लोक 28-40

दशम स्कन्ध: अष्टसप्तसप्ततितम अध्याय (पूर्वार्ध)

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श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: अष्टसप्तसप्ततितम अध्याय श्लोक 28-40 का हिन्दी अनुवाद


भगवान बलराम यद्यपि तीर्थयात्रा के कारण दुष्टों के वध से भी अलग हो गये थे, फिर भी इतना कहकर उन्होंने अपने हाथ में स्थित कुश की नोक से उन पर प्रहार कर दिया और वे तुरंत मर गये। होनहार ही ऐसी थी। सूत जी के मरते ही सब ऋषि-मुनि हाय-हाय करने लगे, सबके चित्त खिन्न हो गये। उन्होंने देवाधिदेव भगवान बलराम जी से कहा- ‘प्रभो! आपने यह बहुत बड़ा अधर्म किया। यदुवंशशिरोमणे! सूत जी को हम लोगों ने ही ब्राह्मणोंचित आसन पर बैठाया था और जब तक हमारा यह सत्र समाप्त न हो, तब तक के लिये उन्हें शारीरिक कष्ट से रहित आयु भी दे दी थी। आपने अनजान में यह ऐसा काम कर दिया, जो ब्रह्महत्या के समान है। हम लोग यह मानते हैं कि आप योगेश्वर हैं, वेद भी आप पर शासन नहीं कर सकता। फिर भी आपसे यह प्रार्थना है कि आपका अवतार लोगों को पवित्र करने के लिये हुआ है; यदि आप किसी की प्रेरणा के बिना स्वयं अपनी इच्छा से ही इस ब्रह्महत्या का प्रायश्चित कर लेंगे तो इससे लोगों को बहुत शिक्षा मिलेगी’।

भगवान बलराम ने कहा- मैं लोगों को शिक्षा देने के लिये, लोगों पर अनुग्रह करने के लिये इस ब्रह्महत्या का प्रायश्चित अवश्य करूँगा, अतः इसके लिये प्रथम श्रेणी का जो प्रायश्चित हो, आप लोग उसी का विधान कीजिये। आप लोग इस सूत को लम्बी आयु, बल, इन्द्रिय-शक्ति आदि जो कुछ भी देना चाहते हों, मुझे बतला दीजिये; मैं अपने योगबल से सब कुछ सम्पन्न किये देता हूँ।

ऋषियों ने कहा- 'बलराम जी! आप ऐसा कोई उपाय कीजिये, जिससे आपका शस्त्र, पराक्रम और इनकी मृत्यु भी व्यर्थ न हो और हम लोगों ने उन्हें जो वरदान दिया था, वह भी सत्य हो जाये'।

भगवान बलराम ने कहा- ऋषियों! वेदों का ऐसा कहना है कि आत्मा ही पुत्र के रूप में उत्पन्न होता है। इसलिये रोमहर्षण के स्थान पर उनका पुत्र आप लोगों को पुराणों की कथा सुनायेगा। उसे मैं अपनी शक्ति से दीर्घायु, इन्द्रियशक्ति और बल दिये देता हूँ।

ऋषियों! इसके अतिरिक्त आप लोग और जो कुछ भी चाहते हों, मुझसे कहिये। मैं आप लोगों की इच्छा पूर्ण करूँगा। अनजान में मुझसे जो अपराध हो गया है, उसका प्रायश्चित भी आप लोग सोच-विचारकर बतलाइये; क्योंकि आप लोग इस विषय के विद्वान हैं।

ऋषियों ने कहा- बलराम जी! इल्वल का पुत्र बल्वल नाम का एक भयंकर दानव है। वह प्रत्येक पर्व पर यहाँ आ पहुँचता है और हमारे इस सत्र को दूषित कर देता है।

यदुनन्दन! वह यहाँ आकर पीब, खून, विष्ठा, मूत्र, शराब और मांस की वर्षा करने लगता है। आप उस पापी को मार डालिये। हम लोगों कि यह बहुत बड़ी सेवा होगी। इसके बाद आप एकाग्रचित्त से तीर्थों में स्नान करते हुए बारह महीनों तक भारतवर्ष की परिक्रमा करते हुए विचरण कीजिये। इससे आपकी शुद्धि हो जायगी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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