श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 76 श्लोक 30-33

दशम स्कन्ध: षट्सप्ततितम अध्याय (पूर्वार्ध)

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श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: षट्सप्ततितम अध्याय श्लोक 30-33 का हिन्दी अनुवाद


बतला तो सही, अब मैं अपने ताऊ बलराम जी और पिता श्रीकृष्ण के सामने जाकर क्या कहूँगा? अब तो सब लोग यही कहेंगे न, कि मैं युद्ध से भग गया? उनके पूछने पर मैं अपने अनुरूप क्या उत्तर दे सकूँगा। मेरी भाभियाँ हँसती हुई मुझसे साफ-साफ पूछेंगी कि ‘कहो, वीर! तुम नपुंसक कैसे हो गये? दूसरों ने युद्ध में तुम्हें नीचा कैसे दिखा दिया? सूत! अवश्य ही तुमने मुझे रणभूमि से भगाकर अक्षम्य अपराध किया है’।

सारथी ने कहा- आयुष्मन! मैंने जो कुछ किया है, सारथी धर्म समझकर ही किया है। मेरे समर्थ स्वामी! युद्ध का ऐसा धर्म है कि संकट पड़ने पर सारथी रथी की रक्षा कर ले और रथी सारथी की। इस धर्म को समझते हुए ही मैंने आपको रणभूमि से हटाया है। शत्रु ने आप पर गदा का प्रहार किया था, जिससे आप मुर्च्छित हो गये थे, बड़े संकट में थे; इसी से मुझे ऐसा करना पड़ा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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