दशम स्कन्ध: द्विषष्टितम अध्याय (पूर्वार्ध)
श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: द्विषष्टितम अध्याय श्लोक 27-35 का हिन्दी अनुवाद
परीक्षित! पहरेदारों से यह समाचार जानकार कि कन्या का चरित्र दूषित हो गया है, बाणासुर के हृदय में बड़ी पीड़ा हुई। वह झटपट उषा के महल में जा धमका और देखा कि अनिरुद्ध जी वहाँ बैठे हुए हैं। प्रिय परीक्षित! अनिरुद्ध जी स्वयं कामावतार प्रद्युम्न जी के पुत्र थे। त्रिभुवन में उनके जैसा सुन्दर और कोई न था। साँवला-सलोना शरीर और उस पर पीताम्बर फहराता हुआ, कमलदल के समान बड़ी-बड़ी कोमल आँखें, लम्बी-लम्बी भुजाएँ, कपोलों पर घुँघराली अलकें और कुण्डलों की झिलमिलाती हुई ज्योति, होठों पर मन्द-मन्द मुस्कान और प्रेमभरी चितवन से मुख की शोभा अनूठी हो रही थी। अनिरुद्ध जी उस समय अपनी सब ओर से सज-धजकर बैठी हुई प्रियतमा उषा के साथ पासे खेल रहे थे। उनके गले में बसंती बेला के बहुत सुन्दर पुष्पों का हार सुशोभित हो रहा था और उस हार में उषा के अंग का सम्पर्क होने से उसके वक्षःस्थल की केशर लगी हुई थी। उन्हें उषा के सामने ही बैठा देखकर बाणासुर विस्मित- चकित हो गया। जब अनिरुद्ध जी ने देखा कि बाणासुर बहुत-से आक्रमणकारी शस्त्रास्त्र से सुसज्जित वीर सैनिकों के साथ महलों में घुस आया है, तब वे उन्हें धराशायी कर देने के लिये लोहे का एक भयंकर परिघ लेकर डट गये, मानो स्वयं कालदण्ड लेकर मृत्यु (यम) खड़ा हो। बाणासुर के साथ आये हुए सैनिक उनको पकड़ने के लिये ज्यों-ज्यों उनकी ओर झपटते, त्यों-त्यों वे उन्हें मार-मारकर गिराते जाते-ठीक वैसे ही, जैसे सूअरों के दल का नायक कुत्तों को मार डाले। अनिरुद्ध जी की चोट से उन सैनिकों के सिर, भुजा, जंघा आदि अंग टूट-फूट गये और वे महलों से निकल भागे। जब बली बाणासुर ने देखा कि यह तो मेरी सारी सेना का संहार कर रहा है, तब वह क्रोध से तिलमिला उठा और उसने नागपाश से उन्हें बाँध लिया। उषा ने जब सुना कि उसके प्रियतम को बाँध लिया गया है, तब वह अत्यन्त शोक और विषाद से विह्वल हो गयी; उसके नेत्रों से आँसू की धारा बहने लगी, वह रोने लगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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