श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 48 श्लोक 12-24

दशम स्कन्ध: अष्टचत्वारिंश अध्याय (पूर्वार्ध)

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श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध:अष्टचत्वारिंश अध्याय श्लोक 12-24 का हिन्दी अनुवाद

तदनन्तर एक दिन सर्वशक्तिमान भगवान श्रीकृष्ण बलराम जी और उद्धव जी के साथ अक्रूर जी की अभिलाषा पूर्ण करने और उनसे कुछ काम लेने के लिये उनके घर गये। करूर्जी ने दूर से ही देख लिया कि हमारे परम बन्धु मनुष्यलोक शिरोमणि भगवान श्रीकृष्ण और बलराम जी आदि पधार रहे हैं। वे तुरंत उठकर आगे गये और आनन्द से भरकर उनका अभिनन्दन और आलिंगन किया। अक्रूर जी ने भगवान श्रीकृष्ण और बलराम जी को नमस्कार किया तथा उद्धव जी के साथ उन दोनों भाइयों ने भी उन्हें नमस्कार किया। जब सब लोग आराम से आसनों पर बैठ गये, तब अक्रूर जी उन लोगों की विधिवत पूजा करने लगे।

परीक्षित! उन्होंने पहले भगवान के चरण धोकर चरणोदक सिर पर धारण किया और फिर अनेकों प्रकार की पूजा-सामग्री, दिव्य वस्त्र, गन्ध, माला और श्रेष्ठ आभूषणों से उनका पूजन किया, सिर झुकाकर उन्हें प्रणाम किया और उनके चरणों को अपनी गोद में लेकर दबाने लगे। उसी समय उन्होंने विनयावनत होकर भगवान श्रीकृष्ण और बलराम जी जी से कहा - ‘भगवन! यह बड़े ही आनन्द और सौभाग्य की बात है कि पापी कंस अपने अनुयायियों के साथ मारा गया। उसे मारकर आप दोनों ने यदुवंश को बहुत बड़े संकट से बचा लिया है तथा उन्नत और समृद्ध किया है।

आप दोनों जगत के कारण और जगद्गुरुरूप, आदिपुरुष हैं। आपके अतिरिक्त और कोई वस्तु नहीं है, न कारण और न तो कार्य। परमात्मन! आपने ही अपनी शक्ति से इसकी रचना की है और आप ही अपनी काल, माया आदि शक्तियों से इसमें प्रविष्ट होकर जितनी भी वस्तुएँ देखी और सुनी जाती हैं, उनके रूप में प्रतीत हो रहे हैं। जैसे पृथ्वी आदि कारण तत्त्वों से ही उनके कार्य स्थावर-जंगम शरीर बनते हैं; वे उनमें अनुप्रविष्ट-से होकर अनेक रूपों में प्रतीत होते हैं, परन्तु वास्तव में वे कारण रूप ही हैं। इसी प्रकार हैं तो केवल आप ही, परन्तु अपने कार्यरूप जगत् में स्वेच्छा से अनेक रूपों में प्रतीत होते हैं। यह भी आपकी एक लीला ही है। प्रभो! आज रजोगुण, सत्त्वगुण और तमोगुण अपनी शक्तियों से क्रमशः जगत की रचना, पालन और संहार करते हैं; किन्तु आप उन गुणों से अथवा उनके द्वारा होने वाले कर्मों से बन्धन में नहीं पड़ते, क्योंकि आप शुद्ध ज्ञानस्वरूप हैं। ऐसी स्थिति में आपके लिये बन्धन का कारण ही क्या हो सकता है?

प्रभो! स्वयं आत्मवस्तु में स्थूलदेह, सूक्ष्मदेह आदि उपाधियाँ न होने के कारण न तो उसमें जन्म-मृत्यु है और न किसी प्रकार का भेदभाव। यही कारण है कि न आपमें बन्धन है और न मोक्ष! आपमें अपने-अपने अभिप्राय के अनुसार बन्धन या मोक्ष की जो कुछ कल्पना होती है, उसका कारण केवल हमारा अविवेक ही है। आपने जगत के कल्याण के लिये यह सनातन वेदमार्ग प्रकट किया है। जब-जब इसे पाखण्ड-पथ से चलने वाले दुष्टों के द्वारा क्षति पहुँचती है, तब-तब आप शुद्ध सत्त्वमय शरीर ग्रहण करते हैं। प्रभो! वही आप इस समय अपने अंश श्री बलराम जी के साथ पृथ्वी का भार दूर करने के लिये यहाँ वसुदेव जी के घर अवतीर्ण हुए हैं। आप असुरों के अंश से उत्पन्न नाममात्र से शासकों की सौ-सौ अक्षौहिणी सेना का संहार करेंगे और यदुवंश के यश का विस्तार करेंगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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