दशम स्कन्ध: षट्त्रिंश अध्याय (पूर्वार्ध)
श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: षट्त्रिंश अध्याय श्लोक 39-40 का हिन्दी अनुवाद
मनुष्य बड़े-बड़े मनोरथों के पुल बाँधता रहता है, परन्तु वह यह नहीं जानता कि दैव ने, प्रारब्ध ने इसे पहले से ही नष्ट कर रखा है। यही कारण है कि कभी प्रारब्ध के अनुकूल होने पर प्रयत्न सफल हो जाता है तो वह हर्ष से फूल उठता है और प्रतिकूल होने पर विफल हो जाता है तो शोकग्रस्त हो जाता है। फिर भी मैं आपकी आज्ञा का पालन तो कर ही रहा हूँ। श्री शुकदेव जी कहते हैं - कंस ने मन्त्रियों और अक्रूर जी को इस प्रकार की आज्ञा देकर सबको विदा कर दिया। तदनन्तर वह अपने महल में चला गया और अक्रूर जी अपने घर लौट आये।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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