चतुर्थ स्कन्ध: अष्टम अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: चतुर्थ स्कन्ध: अष्टम अध्यायः श्लोक 74-82 का हिन्दी अनुवाद
पाँचवाँ मास लगने पर राजकुमार ध्रुव श्वास को जीतकर परब्रह्म का चिन्तन करते हुए एक पैर से खंभे के समान निश्चल भाव से खड़े हो गये। उस समय उन्होंने शब्दादि विषय और इन्द्रियों के नियामक अपने मन को सब ओर से खींच लिया तथा हृदयस्थित हरि के स्वरूप का चिन्तन करते हुए चित्त को किसी दूसरी ओर न जाने दिया। जिस समय उन्होंने महदादि सम्पूर्ण तत्त्वों के आधार तथा प्रकृति और पुरुष के भी अधीश्वर परब्रह्म की धारणा की, उस समय (उनके तेज को न सह सकने के कारण) तीनों लोक काँप उठे। जब राजकुमार ध्रुव एक पैर से खड़े हुए, तब उनके अँगूठे से दबकर आधी पृथ्वी इस प्रकार झुक गयी, जैसे किसी गजराज के चढ़ जाने पर नाव झुक गयी, जैसे किसी गजराज के चढ़ जाने पर पद-पद पर दायीं-बायीं ओर डगमगाने लगती है। ध्रुव जी अपने इन्द्रियद्वार तथा प्राणों को रोककर अनन्य बुद्धि से विश्वात्मा श्रीहरि का ध्यान करने लगे। इस प्रकार उनकी समष्टि प्राण से अभिन्नता हो जाने के कारण सभी जीवों का श्वास-प्रश्वास रुक गया। इससे समस्त लोक और लोकपालों को बड़ी पीड़ा हुई और वे सब घबराकर श्रीहरि की शरण में गये। देवताओं ने कहा- भगवन्! समस्त स्थावर-जंगम जीवों के शरीरों का प्राण एक साथ ही रुक गया है, ऐसा तो हमने पहले कभी अनुभव नहीं किया। आप शरणागतों की रक्षा करने वाले हैं, अपनी शरण में आये हुए हम लोगों को इस दुःख से छुड़ाइये। श्रीभगवान् ने कहा- दवताओं! तुम डरो मत। उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव ने अपने चित्त को मुझ विश्वात्मा में लीन कर दिया है, इस समय मेरे साथ उसकी अभेद धारणा सिद्ध हो गयी है, इसी से उसके प्राणनिरोध से तुम सबका प्राण भी रुक गया है। अब तुम अपने-अपने लोकों को जाओ, मैं उस बालक को इस दुष्कर तप से निवृत्त कर दूँगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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