श्रीमद्भागवत महापुराण चतुर्थ स्कन्ध अध्याय 21 श्लोक 44-52

चतुर्थ स्कन्ध: एकविंश अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: चतुर्थ स्कन्ध: एकविंश अध्यायः श्लोक 44-52 का हिन्दी अनुवाद


उस गुणवान्, शीलसम्पन्न, कृतज्ञ और गुरुजनों की सेवा करने वाले पुरुष के पास सारी सम्पदाएँ अपने-आप आ जाती हैं। अतः मेरी तो यही अभिलाषा है कि ब्राह्मण कुल, गोवंश और भक्तों के सहित श्रीभगवान् मुझ पर प्रसन्न रहें।

श्रीमैत्रेय जी कहते हैं- महाराज पृथु का यह भाषण सुनकर देवता, पितर और ब्राह्मण आदि सभी साधुजन बड़े प्रसन्न हुए और ‘साधु! साधु!’ यों कहकर उनकी प्रशंसा करने लगे। उन्होंने कहा, ‘पुत्र के द्वारा पिता पुण्यलोकों को प्राप्त कर लेता है’ यह श्रुति यथार्थ है; पापी वेन ब्राह्मणों के शाप से मारा गया था; फिर भी इनके पुण्यबल से उसका नरक से निस्तार हो गया।

इसी प्रकार हिरण्यकशिपु भी भगवान् की निन्दा करने के कारण नरकों में गिरने वाला ही था कि अपने पुत्र प्रह्लाद के प्रभाव से उन्हें पार कर गया।

वीरवर पृथु जी! आप तो पृथ्वी के पिता ही हैं और सब लोकों के एकमात्र स्वामी श्रीहरि में भी आपकी ऐसी अविचल भक्ति है, इसलिये आप अनन्त वर्षों तक जीवित रहें। आपका सुयश बड़ा पवित्र है; आप उदारकीर्ति ब्राह्मण्यदेव श्रीहरि की कथाओं का प्रचार करते हैं। हमारा बड़ा सौभाग्य है; आज आपको अपने स्वामी के रूप में पाकर हम अपने को भगवान् के ही राज्य में समझते हैं।

स्वामिन्! अपने आश्रितों को इस प्रकार का श्रेष्ठ उपदेश देना आपके लिये कोई आश्चर्य की बात नहीं है; क्योंकि अपनी प्रजा के ऊपर प्रेम रखना तो करुणामय महापुरुषों का स्वभाव ही होता है। हम लोग प्रारब्धवश विवेकहीन होकर संसारारण्य में भटक रहे थे; सो प्रभो! आज आपने हमें इस अज्ञानान्धकार के पार पहुँचा दिया। आप शुद्ध सत्त्वमय परम पुरुष हैं, जो ब्राह्मण जाति में प्रविष्ट होकर क्षत्रियों की और क्षत्रिय जाति में प्रविष्ट होकर ब्राह्मणों की तथा दोनों जातियों में प्रतिष्ठित होकर सारे जगत् की रक्षा करते हैं। हमारा आपको नमस्कार है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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