श्रीमद्भागवत महापुराण अष्टम स्कन्ध अध्याय 6 श्लोक 13-24

अष्टम स्कन्ध: षष्ठोऽध्याय: अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: अष्टम स्कन्ध: षष्ठ अध्यायः श्लोक 13-24 का हिन्दी अनुवाद


कमलनाभ! जिस प्रकार दावाग्नि से झुलसता हुआ हाथी गंगाजल में डुबकी लगाकर सुख और शान्ति का अनुभव करने लगता है, वैसे ही आपके आविर्भाव से हम लोग परम सुखी और शान्त हो गये हैं। स्वामी! हम लोग बहुत दिनों से आपके दर्शनों के लिये अत्यन्त लालायित हो रहे थे। आप ही हमारे बाहर और भीतर के आत्मा हैं। हम सब लोकपाल जिस उद्देश्य से आपके चरणों की शरण में आये हैं, उसे आप कृपा करके पूर्ण कीजिये। आप सबके साक्षी हैं, अतः इस विषय में हम लोग आपसे और क्या निवेदन करें।

प्रभो! मैं, शंकर जी, अन्य देवता, ऋषि और दक्ष आदि प्रजापति-सब-के-सब अग्नि से अलग हुई चिनगारी की तरह आपके ही अंश हैं और अपने को आपसे अलग मानते हैं। ऐसी स्थिति में प्रभो! हम लोग समझ ही क्या सकते हैं। ब्राह्मण और देवताओं के कल्याण के लिये जो कुछ करना आवश्यक हो, उसका आदेश आप ही दीजिये और आप वैसा स्वयं कर भी लीजिये।

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- ब्रह्मा आदि देवताओं ने इस प्रकार स्तुति करके अपनी सारी इन्द्रियाँ रोक लीं और सब बड़ी सावधानी के साथ हाथ जोड़कर खड़े हो गये। उनकी स्तुति सुनकर और उसी प्रकार उनके हृदय की बात जानकर भगवान् मेघ के समान गम्भीर वाणी से बोले।

परीक्षित! समस्त देवताओं के तथा जगत् के एकमात्र स्वामी भगवान् अकेले ही उनका सब कार्य करने में समर्थ थे, फिर भी समुद्र मन्थन आदि लीलाओं के द्वारा विहार करने की इच्छा से वे देवताओं को सम्बोधित करके इस प्रकार कहने लगे।

श्रीभगवान् ने कहा- ब्रह्मा, शंकर और देवताओं! तुम लोग सावधान होकर मेरी सलाह सुनो। तुम्हारे कल्याण का यही उपाय है। इस समय असुरों पर काल की कृपा है। इसलिये जब तक तुम्हारे अभ्युदय और उन्नति का समय नहीं आता, तब तक तुम दैत्य और दानवों के पास जाकर उनसे सन्धि कर लो। देवताओं! कोई बड़ा कार्य करना हो तो शत्रुओं से भी मेल-मिलाप कर लेना चाहिये। यह बात अवश्य है कि काम बन जाने पर उनके साथ साँप और चूहे वाला बर्ताव कर सकते हैं।[1] तुम लोग बिना विलम्ब के अमृत निकालने का प्रयत्न करो। उसे पी लेने पर मरने वाला प्राणी भी अमर हो जाता है। पहले क्षीरसागर में सब प्रकार के घास, तिनके, लताएँ और ओषधियाँ डाल दो। फिर तुम लोग मन्दराचल की मथानी और वासुकि नाग की नेती बनाकर मेरी सहायता से समुद्र का मन्थन करो। अब आलस्य और प्रमाद का समय नहीं है। देवताओं! विश्वास रखो-दैत्यों को तो मिलेगा केवल श्रम और क्लेश, परन्तु फल मिलेगा तुम्हीं लोगों को। देवताओं! असुर लोग तुमसे जो-जो चाहें, सब स्वीकार कर लो। शान्ति से सब काम बन जाते हैं, क्रोध करने से कुछ नहीं होता।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. किसी मदारी की पिटारी में साँप तो पहले से था ही, संयोगवश उसमें एक चूहा भी जा घुसा। चूहे के भयभीत होने पर साँप ने उसे प्रेम से समझाया कि तुम पिटारी में छेद कर दो, फिर हम दोनों भाग निकलेंगे। पहले तो साँप की इस बात पर चूहे को विश्वास न हुआ, परन्तु पीछे उसने पिटारी में छेद कर दिया। इस प्रकार काम हो जाने पर साँप चूहे को निगल गया और पिटारी से निकल भागा।

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