श्रीमद्भागवत महापुराण अष्टम स्कन्ध अध्याय 2 श्लोक 20-28

अष्टम स्कन्ध: द्वितीयोऽध्याय: अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: अष्टम स्कन्ध: द्वितीय अध्यायः श्लोक 20-28 का हिन्दी अनुवाद


उस पर्वत के घोर जंगल में बहुत-सी हथिनियों के साथ एक गजेन्द्र निवास करता था। वह बड़े-बड़े शक्तिशाली हाथियों का सरदार था। एक दिन वह उसी पर्वत पर अपनी हथिनियों के साथ काँटे वाले कीचक, बाँस, बेंत, बड़ी-बड़ी झाड़ियों और पेड़ों को रौंदता हुआ घूम रहा था। उसकी गन्धमात्र से सिंह, हाथी, बाघ, गैंडे आदि हिंस्र जन्तु, नाग तथा काले-गोर शरभ और चमरी गाय आदि डरकर भाग जाया करते थे और उसकी कृपा से भेड़िये, सूअर, भैंसे, रीछ, शल्य, लंगूर तथा कुत्ते, बंदर, हरिन और खरगोश आदि क्षुद्र जीव सब कहीं निर्भय विचरते रहते थे। उसके पीछे-पीछे हाथियों के छोटे-छोटे बच्चे दौड़ रहे थे। बड़े-बड़े हाथी और हथिनियाँ भी उसे घेरे हुए चल रही थीं। उसकी धमक से पहाड़ एकबारगी काँप उठता था। उसके गण्डस्थल से टपकते हुए मद का पान करने के लिये साथ-साथ भौंरे उड़ते जा रहे थे। मद के कारण उसके नेत्र विह्वल हो रहे थे। बड़े जोर की धूप थी, इसलिये वह व्याकुल हो गया और उसे तथा उसके साथियों को प्यास भी सताने लगी। उस समय दूर से ही कमल के पराग से सुवासित वायु की गन्ध सूँघकर वह उसी सरोवर की ओर चल पड़ा, जिसकी शीतलता और सुगन्ध लेकर वायु आ रही थी। थोड़ी ही देर में वेग से चलकर वह सरोवर के तट पर जा पहुँचा।

उस सरोवर का जल अत्यन्त निर्मल एवं अमृत के समान मधुर था। सुनहले और अरुण कमलों की केसर से वह महक रहा था। गजेन्द्र ने पहले तो उसमें घुसकर अपनी सूँड़ से उठा-उठा जी भरकर जल पिया, फिर उस जल में स्नान करके अपनी थकान मिटायी। गजेन्द्र गृहस्थ पुरुषों की भाँति मोहग्रस्त होकर अपनी सूँड़ से जल की फुहारें छोड़-छोड़कर साथ की हथिनियों और बच्चों को नहलाने लगा तथा उनके मुँह में सूँड़ डालकर जल पिलाने लगा। भगवान की माया से मोहित हुआ गजेन्द्र उन्मत्त हो रहा था। उस बेचारे को इस बात का पता ही न था कि मेरे सिर पर बहुत बड़ी विपत्ति मँडरा रही है।

परीक्षित! गजेन्द्र जिस समय इतना उन्मत्त हो रहा था, उसी समय प्रारब्ध की प्रेरणा से एक बलवान् ग्राह ने क्रोध में भरकर उसका पैर पकड़ लिया। इस प्रकार अकस्मात् विपत्ति में पड़कर उस बलवान् गजेन्द्र ने अपनी शक्ति के अनुसार अपने को छुड़ाने की बड़ी चेष्टा की, परन्तु छुड़ा न सका। दूसरे हाथी, हथिनियों और उनके बच्चों ने देखा कि उनके स्वामी को बलवान् ग्राह बड़े वेग से खींच रहा है और वे बहुत घबरा रहे हैं। उन्हें बड़ा दुःख हुआ। वे बड़ी विकलता से चिग्घाड़ने लगे। बहुतों ने उसे सहायता पहुँचाकर जल से बाहर निकाल लेना चाहा, परन्तु इसमें भी वे असमर्थ ही रहे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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