श्रीमद्भागवत महापुराण अष्टम स्कन्ध अध्याय 21 श्लोक 27-34

अष्टम स्कन्ध: अथैकविंशोऽध्याय: अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: अष्टम स्कन्ध: एकविंश अध्यायः श्लोक 27-34 का हिन्दी अनुवाद


जब सर्वशक्तिमान भगवान् विष्णु ने बलि को इस प्रकार बँधवा दिया, तब पृथ्वी, आकाश और समस्त दिशाओं में लोग ‘हाय-हाय!’ करने लगे। यद्यपि बलि वरुण के पाशों से बँधे हुए थे, उनकी सम्पत्ति भी उनके हाथों से निकल गयी थी-फिर भी उनकी बुद्धि निश्चयात्मक थी और सब लोग उनके उदार यश का गान कर रहे थे।

परीक्षित! उस समय भगवान् ने बलि से कहा- ‘असुर! तुमने मुझे पृथ्वी के तीन पग दिये थे; दो पग में तो मैंने सारी त्रिलोकी नाप ली, अब तीसरा पग पूरा करो। जहाँ तक सूर्य की गरमी पहुँचती है, जहाँ तक नक्षत्रों और चन्द्रमा की किरणें पहुँचती हैं और जहाँ तक बादल जाकर बरसते हैं-वहाँ तक की सारी पृथ्वी तुम्हारे अधिकार में थी। तुम्हारे देखते-ही-देखते मैंने अपने एक पैर से भूर्लोक, शरीर से आकाश और दिशाएँ एवं दूसरे पैर से स्वर्लोक नाप लिया है। इस प्रकार तुम्हारा सब कुछ मेरा हो चुका है। फिर भी तुमने जो प्रतिज्ञा की थी, उसे पूरा न कर सकने के कारण अब तुम्हें नरक में रहना पड़ेगा। तुम्हारे गुरु की तो इस विषय में सम्मति है ही; अब जाओ, तुम नरक में प्रवेश करो। जो याचक को देने की प्रतिज्ञा करके मुकर जाता है और इस प्रकार उसे धोखा देता है, उसके सारे मनोरथ व्यर्थ होते हैं। स्वर्ग की बात तो दूर रही, उसे नरक में गिरना पड़ता है। तुम्हें इस बात का बड़ा घमंड था कि मैं बड़ा धनी हूँ। तुमने मुझसे ‘दूँगा’-ऐसी प्रतिज्ञा करके फिर धोखा दे दिया। अब तुम कुछ वर्षों तक इस झूठ का फल नरक में भोगो’।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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