श्रीमद्भागवत महापुराण अष्टम स्कन्ध अध्याय 21 श्लोक 14-26

अष्टम स्कन्ध: अथैकविंशोऽध्याय: अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: अष्टम स्कन्ध: एकविंश अध्यायः श्लोक 14-26 का हिन्दी अनुवाद


परीक्षित! राजा बलि की इच्छा न होने पर भी वे सब बड़े क्रोध से शूल, पट्टिश आदि ले-लेकर वामन भगवान को मारने के लिये टूट पड़े।

परीक्षित! जब विष्णु भगवान के पार्षदों ने देखा कि दैत्यों के सेनापति आक्रमण करने के लिये दौड़े आ रहे हैं, तब उन्होंने हँसकर अपने-अपने शस्त्र उठा लिये और उन्हें रोक दिया। नन्द, सुनन्द, जय, विजय, प्रबल, बल, कुमुद, कुमुदाक्ष, विष्वक्सेन, गरुड़, जयन्त, श्रुतदेव, पुष्पदन्त और सात्वत- ये सभी भगवान के पार्षद दस-दस हजार हाथियों का बल रखते हैं। वे असुरों की सेना का संहार करने लगे।

जब राजा बलि ने देखा कि भगवान के पार्षद मेरे सैनिकों को मार रहे हैं और वे भी क्रोध में भरकर उनसे लड़ने के लिये तैयार हो रहे हैं, तो उन्होंने शुक्राचार्य के शाप का स्मरण करके उन्हें युद्ध करने से रोक दिया। उन्होंने विप्रचित्ति, राहु, नेमि आदि दैत्यों को सम्बोधित करके कहा- ‘भाइयों! मेरी बात सुनो। लड़ो मत, वापस लौट आओ। यह समय हमारे कार्य के अनुकूल नहीं है। दैत्यों! जो काल समस्त प्राणियों को सुख और दुःख देने की सामर्थ्य रखता है-उसे यदि कोई पुरुष चाहे कि मैं अपने प्रयत्नों से दबा दूँ, तो यह उसकी शक्ति से बाहर है। जो पहले हमारी उन्नति और देवताओं की अवनति के कारण हुए थे, वही काल भगवान अब उनकी उन्नति और हमारी अवनति के कारण हो रहे हैं। बल, मन्त्री, बुद्धि, दुर्ग, मन्त्र, ओषधि और सामादि उपाय-इनमें से किसी भी साधन के द्वारा अथवा सबके द्वारा मनुष्य काल पर विजय नहीं प्राप्त कर सकता। जब दैव तुम लोगों के अनुकूल था, तब तुम लोगों ने भगवान के इन पार्षदों को कई बार जीत लिया था। पर देखो, आज वे ही युद्ध में हम पर विजय प्राप्त करके सिंहनाद कर रहे हैं। यदि दैव हमारे अनुकूल हो जायेगा, तो हम भी इन्हें जीत लेंगे। इसलिये उस समय की प्रतीक्षा करो, जो हमारी कार्य-सिद्धि के लिये अनुकूल हो’।

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! अपने स्वामी बलि की बात सुनकर भगवान के पार्षदों से हारे हुए दानव और दैत्य सेनापति रसातल में चले गये। उनके जाने के बाद भगवान के हृदय की बात जानकर पक्षिराज गरुड़ ने वरुण के पाशों से बलि को बाँध दिया। उस दिन उनके अश्वमेध यज्ञ में सोमपान होने वाला था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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