श्रीमद्भागवत महापुराण अष्टम स्कन्ध अध्याय 20 श्लोक 29-34

अष्टम स्कन्ध: अथ विंशोऽध्याय: अध्याय

Prev.png

श्रीमद्भागवत महापुराण: अष्टम स्कन्ध: विंश अध्यायः श्लोक 29-34 का हिन्दी अनुवाद


उनकी नाड़ियों में नदियाँ, नखों में शिलाएँ और बुद्धि में ब्रह्मा, देवता एवं ऋषिगण दीख पड़े। इस प्रकार वीरवर बलि ने भगवान् की इन्द्रियों और शरीर में सभी चराचर प्राणियों का दर्शन किया।

परीक्षित! सर्वात्मा भगवान् में यह सम्पूर्ण जगत देखकर सब-के-सब दैत्य अत्यन्त भयभीत हो गये। इसी समय भगवान् के पास असह्य तेज वाला सुदर्शन चक्र, गरजते हुए मेघ के समान भयंकर टंकार करने वाला शारंग धनुष, बादल की तरह गम्भीर शब्द करने वाला पांचजन्य शंख, विष्णु भगवान् की अत्यन्त वेगवती कौमुदकी गदा, सौ चन्द्राकार चिह्नों वाली ढाल और विद्याधर नाम की तलवार, अक्षय बाणों से भरे दो तरकश तथा लोकपालों के सहित भगवान् के सुनन्द आदि पार्षदगण सेवा करने के लिये उपस्थित हो गये। उस समय भगवान की बड़ी शोभा हुई। मस्तक पर मुकुट, बाहुओं में बाजूबंद, कानों में मकराकृत कुण्डल, वक्षःस्थल पर श्रीवत्स चिह्न, गले में कौस्तुभ मणि, कमर में मेखला और कंधे पर पीताम्बर शोभायमान हो रहा था।

वे पाँच प्रकार के पुष्पों की बनी वनमाला धारण किये हुए थे, जिस पर मधुलोभी भौंरे गुंजार कर रहे थे। उन्होंने अपने एक पग से बलि की सारी पृथ्वी नाप ली, शरीर से आकाश और भुजाओं से दिशाएँ घेर लीं; दूसरे पग से उन्होंने स्वर्ग को भी नाप लिया। तीसरा पैर रखने के लिये बलि की तनिक-सी भी कोई वस्तु न बची। भगवान का वह दूसरा पग ही ऊपर की ओर जाता हुआ महर्लोक, जनलोक और तपलोक से भी ऊपर सत्यलोक में पहुँच गया।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः