श्रीमद्भागवत महापुराण अष्टम स्कन्ध अध्याय 19 श्लोक 40-43

अष्टम स्कन्ध: अथैकोनविंशोऽध्याय: अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: अष्टम स्कन्ध: एकोनविंश अध्यायः श्लोक 40-43 का हिन्दी अनुवाद


जैसे जड़ न रहने पर वृक्ष सूखकर थोड़े ही दिनों में गिर जाता है, उसी प्रकार यदि धन देने से अस्वीकार न किया जाये तो यह जीवन सूख जाता है-इसमें सन्देह नहीं। ‘हाँ मैं दूँगा’-यह वाक्य ही धन को दूर हटा देता है। इसलिये इसका उच्चारण ही अपूर्ण अर्थात् धन से खाली कर देने वाला है। यही कारण है कि जो पुरुष ‘हाँ मैं दूँगा’-ऐसा कहता है, वह धन से खाली हो जाता है।

जो याचक को सब कुछ देना स्वीकार कर लेता है, वह अपने लिये भोग की कोई सामग्री नहीं रख सकता। इसके विपरीत ‘मैं नहीं दूँगा’-यह जो अस्वीकारात्मक असत्य है, वह अपने धन को सुरक्षित रखने तथा पूर्ण करने वाला है। परन्तु ऐसा सब समय नहीं करना चाहिये।

जो सबसे, सभी वस्तुओं के लिये नहीं करता रहता है, उसकी अपकीर्ति हो जाती है। वह तो जीवित रहने पर भी मृतक के समान ही है। स्त्रियों को प्रसन्न करने के लिये, हास-परिहास में, विवाह में, कन्या आदि की प्रशंसा करते समय, अपनी जीविका की रक्षा के लिये, प्राण संकट उपस्थित होने पर, गौ और ब्राह्मण के हित के लिये तथा किसी को मृत्यु से बचाने के लिये असत्य-भाषण भी उतना निन्दनीय नहीं है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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