अष्टम स्कन्ध: पञ्चदशोऽध्याय: अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: अष्टम स्कन्ध: पञ्चदश अध्यायः श्लोक 25-36 का हिन्दी अनुवाद
देवगुरु बृहस्पति जी ने कहा- ‘इन्द्र! मैं तुम्हारे शत्रु बलि की उन्नति का कारण जानता हूँ। ब्रह्मवादी भृगुवंशियों ने अपने शिष्य बलि को महान् तेज देकर शक्तियों का खजाना बना दिया है। सर्वशक्तिमान् भगवान् को छोड़कर तुम या तुम्हारे-जैसा और कोई भी बलि के सामने उसी प्रकार नहीं ठहर सकता, जैसे काल के सामने प्राणी। इसलिये तुम लोग स्वर्ग को छोड़कर कहीं छिप जाओ और उस समय की प्रतीक्षा करो, जब तुम्हारे शत्रु का भाग्यचक्र पलटे। इस समय ब्राह्मणों के तेज से बलि की उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। उसकी शक्ति बहुत बढ़ गयी है। जब यह उन्हीं ब्राह्मणों का तिरस्कार करेगा, तब अपने परिवार-परिकर के साथ नष्ट हो जायेगा। बृहस्पति जी देवताओं के समस्त स्वार्थ और परमार्थ के ज्ञाता थे। उन्होंने जब इस प्रकार देवताओं को सलाह दी, तब वे स्वेच्छानुसार रूप धारण करके स्वर्ग छोड़कर चले गये। देवताओं के छिप जाने पर विरोचननन्दन बलि ने अमरावतीपुरी पर अपना अधिकार कर लिया और फिर तीनों लोकों को जीत लिया। जब बलि विश्वविजयी हो गये, तब शिष्यप्रेमी भृगुवंशियों ने अपने अनुगत शिष्य से सौ अश्वमेध यज्ञ करवाये। उन यज्ञों के प्रभाव से बलि की कीर्ति-कौमुदी तीनों लोकों से बाहर भी दशों दिशाओं में फैल गयी और वे नक्षत्रों के राजा चन्द्रमा के समान शोभायमान हुए। ब्राह्मण-देवताओं की कृपा से प्राप्त समृद्ध राज्यलक्ष्मी का वे बड़ी उदारता से उपभोग करने लगे और अपने को कृतकृत्य-सा मानने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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