श्रीमद्भागवत महापुराण अष्टम स्कन्ध अध्याय 10 श्लोक 38-57

अष्टम स्कन्ध: दशमोऽध्याय: अध्याय

Prev.png

श्रीमद्भागवत महापुराण: अष्टम स्कन्ध: दशम अध्यायः श्लोक 38-57 का हिन्दी अनुवाद


उनके चरणों की धमक और रथ के पहियों की रगड़ से पृथ्वी खुद गयी। उस समय रणभूमि से ऐसी प्रचण्ड धूल उठी कि उसने दिशा, आकाश और सूर्य को भी ढक दिया। परन्तु थोड़ी ही देर में खून की धारा से भूमि आप्लावित हो गयी और कहीं धूल का नाम भी न रहा।

तदनन्तर लड़ाई का मैदान कटे हुए सिरों से भर गया। किसी के मुकुट और कुण्डल गिर गये थे, तो किसी की आँखों से क्रोध की मुद्रा प्रकट हो रही थी। किसी-किसी ने अपने दाँतों से होंठ दबा रखा था। बहुतों की आभूषणों और शस्त्रों से सुसज्जित लंबी-लंबी भुजाएँ कटकर गिरी हुई थीं और बहुतों की मोटी-मोटी जाँघें कटी हुई पड़ी थीं। इस प्रकार वह रणभूमि बड़ी भीषण दीख रही थी। तब वहाँ बहुत-से धड़ अपने कटकर गिरे हुए सिरों के नेत्रों से देखकर हाथों में हथियार उठा वीरों की ओर दौड़ने और उछलने लगे।

राजा बलि ने दस बाण इन्द्र पर, तीन उनके वाहन ऐरावत पर, चार ऐरावत के चार चरण-रक्षकों पर और एक मुख्य महावत पर-इस प्रकार कुल अठारह बाण छोड़े। इन्द्र ने देखा कि बलि के बाण तो हमें घायल करना ही चाहते हैं। तब उन्होंने बड़ी फुर्ती से उतने ही तीखे भल्ल नामक बाणों से उनको वहाँ तक पहुँचने के पहले ही हँसते-हँसते काट डाला। इन्द्र की यह प्रशंसनीय फुर्ती देखकर राजा बलि और भी चिढ़ गये। उन्होंने एक बहुत बड़ी शक्ति, जो बड़े भारी लूके के समान जल रही थी, उठायी। किन्तु अभी वह उनके हाथ में ही थी-छूटने नहीं पायी थी कि इन्द्र ने उसे भी काट डाला। इसके बाद बलि ने एक के पीछे के एक क्रमशः शूल, प्रास, तोमर और शक्ति उठायी। परन्तु वे जो-जो शस्त्र हाथ में उठाते, इन्द्र उन्हें टुकड़े-टुकड़े कर डालते। इस हस्तलाघव से इन्द्र का ऐश्वर्य और भी चमक उठा।

परीक्षित! अब इन्द्र की फुर्ती से घबराकर पहले तो बलि अन्तर्धान हो गये, फिर उन्होंने आसुरि माया की सृष्टि की। तुरंत ही देवताओं की सेना के ऊपर एक पर्वत प्रकट हुआ। उस पर्वत से दावाग्नि से जलते हुए वृक्ष और टाँकी-जैसी तीखी धार वाले शिखरों के साथ नुकीली शिलाएँ गिरने लगीं। इससे देवताओं की सेना चकनाचूर होने लगी। तत्पश्चात् बड़े-बड़े साँप, दन्दशूक, बिच्छू और अन्य विषैले जीव उछल-उछलकर काटने और डंक मारने लगे। सिंह, बाघ और सूअर देवसेना के बड़े-बड़े हाथियों को फाड़ने लगे। परीक्षित! हाथों में शूल लिये ‘मारो-काटो’ इस प्रकार चिल्लाती हुई सैकड़ों नंग-धड़ंग राक्षसियाँ और राक्षस भी वहाँ प्रकट हो गये। कुछ ही क्षण बाद आकाश में बादलों की घनघोर घटाएँ मँडराने लगीं, उनके आपस में टकराने से बड़ी गहरी और कठोर गर्जना होने लगी, बिजलियाँ चमकने लगीं और आँधी के झकझोरने से बादल अंगारों की वर्षा करने लगे।

दैत्यराज बलि ने प्रलय की अग्नि के समान बड़ी भयानक आग की सृष्टि की। वह बात-की-बात में वायु की सहायता से देवसेना को जलाने लगी। थोड़ी ही देर में ऐसा जान पड़ा कि प्रबल आँधी के थपेड़ों से समुद्र में बड़ी-बड़ी लहरें और भयानक भँवर उठ रहे हैं और वह अपनी मर्यादा छोड़कर चारों ओर से देवसेना को घेरता हुआ उमड़ा आ रहा है। इस प्रकार जब उन भयानक असुरों ने बहुत बड़ी माया की सृष्टि की और स्वयं अपनी माया के प्रभाव से छिपे रहे-न दीखने के कारण उन पर प्रहार भी नहीं किया जा सकता था। तब देवताओं के सैनिक बहुत दुःखी हो गये। परीक्षित! इन्द्र आदि देवताओं ने उनकी माया का प्रतीकार करने के लिये बहुत कुछ सोचा-विचारा, परन्तु उन्हें कुछ न सूझा। तब उन्होंने विश्व के जीवनदाता भगवान् का ध्यान किया और ध्यान करते ही वे वहीं प्रकट हो गये। बड़ी ही सुन्दर झाँकी थी। गरुड़ के कंधे पर उनके चरणकमल विराजमान थे। नवीन कमल के समान बड़े ही कोमल नेत्र थे। पीताम्बर धारण किये हुए थे। आठ भुजाओं में आठ आयुध, गले में कौस्तुभ मणि, मस्तक पर अमूल्य मुकुट एवं कानों में कुण्डल झलमला रहे थे। देवताओं ने अपने नेत्रों से भगवान् की इस छबि का दर्शन किया।

परमपुरुष परमात्मा के प्रकट होते ही उनके प्रभाव से असुरों की वह कपटभरी माया विलीन हो गयी-ठीक वैसे ही जैसे जग जाने पर स्वप्न की वस्तुओं का पता नहीं चलता। ठीक ही है, भगवान् की स्मृति समस्त विपत्तियों से मुक्त कर देती है। इसके बाद कालनेमि दैत्य ने देखा कि लड़ाई के मैदान में गरुड़वाहन भगवान् आ गये हैं, तब उसने अपने सिंह पर बैठे-ही-बैठे वेग से उनके ऊपर एक त्रिशूल चलाया। वह गरुड़ के सिर पर लगने वाला ही था कि खेल-खेल में भगवान् ने उसे पकड़ लिया और उसी त्रिशूल से उसके चलाने वले कालनेमि दैत्य तथा उसके वाहन को मार डाला। माली और सुमाली-दो दैत्य बड़े बलवान् थे, भगवान् ने युद्ध में अपने चक्र से उनके सिर भी काट डाले और वे निर्जीव होकर गिर पड़े। तदनन्तर माल्यवान् ने अपनी प्रचण्ड गदा से गरुड़ पर बड़े वेग के साथ प्रहार किया। परन्तु गर्जना करते हुए माल्यवान् के प्रहार करते-न-करते ही भगवान् ने चक्र से उनके सिर को भी धड़ से अलग कर दिया।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः