श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद
परम गुह्य ज्ञान
अध्याय-9 : श्लोक-11
कृतवान् किल कर्माणि सह रामेण केशवः। “भगवान श्रीकृष्ण ने बलराम के साथ-साथ मनुष्य की भाँति क्रीड़ा की और इस तरह प्रच्छन्न रूप में उन्होंने अनेक अतिमानवीय कार्य किये।” मनुष्य के रूप में भगवान का प्राकट्य मुर्ख को मोहित बना देता है। कोई भी मनुष्य उन अलौकिक कार्यों को सम्पन्न नहीं कर सकता जिन्हें उन्होंने इस धरा पर करके दिखा दिया था। जब कृष्ण अपने पिता तथा माता, वासुदेव तथा देवकी के समक्ष प्रकट हुए तो वे चार भुजाओं से युक्त थे। किन्तु माता-पिता की प्रार्थना पर उन्होंने एक सामान्य शिशु का रूप धारण कर लिया– बभूव प्राकृतः शिशुः।[2] वे एक सामान्य शिशु, एक सामान्य मानव बन गये। यहाँ पर भी यह इंगित होता है कि सामान्य व्यक्ति के रूप में प्रकट होना उनके दिव्य शरीर का एक गुण है। भगवद्गीता के ग्याहरवें अध्याय में भी कहा गया है कि अर्जुन ने कृष्ण से अपना चतुर्भुज रूप दिखलाने के लिए प्रार्थना की।[3] इस रूप को प्रकट करने के बाद अर्जुन के प्रार्थना करने पर उन्होंने पूर्व मनुष्य रूप धारण कर लिया।[4] भगवान के ये विभिन्न गुण निश्चय ही सामान्य मनुष्य जैसे नहीं हैं।
ऐसे अनेक निर्विशेष वादी है जो मन्दिर पूजा का उपहास करते हैं। वे कहते हैं कि चूँकि भगवान सर्वत्र हैं तो फिर अपने को हम मन्दिर पूजा तक ही सीमित क्यों रखें? यदि ईश्वर सर्वत्र हैं तो क्या वे मन्दिर या अर्चाविग्रह में नहीं होंगे? यद्यपि सगुण वादी तथा निर्विशेष वादी निरन्तर लड़ते रहेंगे, किन्तु कृष्ण भावनामृत में पूर्ण भक्त यह जानता है कि यद्यपि कृष्ण भगवान हैं, किन्तु इसके साथ वे सर्वव्यापी भी हैं, जिसकी पुष्टि ब्रह्मसंहिता में हुई है। यद्यपि उनका निजी धाम गोलोक वृन्दावन है और वे वहीं निरन्तर वास करते हैं, किन्तु वे अपनी शक्ति की विभिन्न अभिव्यक्तियों द्वारा तथा अपने स्वांश द्वारा भौतिक तथा आध्यात्मिक जगत में सर्वत्र विद्यमान रहते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज