श्रीमद्भगवद्गीता -श्रील् प्रभुपाद पृ. 313

श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप -श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद

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भगवद्ज्ञान
अध्याय 7 : श्लोक-4

श्रीमद्भागवत में भी इसकी पुष्टि होती है। भगवान की पृथक-पृथक शक्तियाँ इस भौतिक जगत के घटक हैं। यहाँ तक कि निर्विशेषवादियों का चरमलक्ष्य ब्रह्मज्योति भी एक अध्यात्मिक शक्ति है, जो परव्योम में प्रकट होती है। ब्रह्मज्योति में वैसी भिन्नताएँ नहीं, जैसी कि वैकुण्ठलोकों में हैं, फिर भी निर्विशेषवादी इस ब्रह्मज्योति को चरम शाश्वत लक्ष्य स्वीकार करते हैं। परमात्मा की अभिव्यक्ति भी क्षीरोदकशायी विष्णु का एक क्षणिक सर्वव्यापी पक्ष है। आध्यात्मिक जगत् में परमात्मा की अभिव्यक्ति शाश्वत नहीं होती। अतः यथार्थ परमसत्य तो श्रीभगवान् कृष्ण हैं। वे पूर्ण शक्तिमान पुरुष हैं और उनकी नाना प्रकार की भिन्ना तथा अन्तरंगा शक्तियाँ होती हैं।

जैसा की ऊपर कहा जा चुका है, भौतिक शक्ति आठ प्रधान रूपों में व्यक्त होती है। इनमें से प्रथम पाँच– पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश स्थूल अथवा विराट सृष्टियाँ कहलाती हैं, जिनमें पाँच इन्द्रियविषय, जिनके नाम हैं– शब्द, स्पर्श, रूप, रस, तथा गंध– सम्मिलित रहते हैं। भौतिक विज्ञान में ये ही दस तत्त्व हैं। किन्तु अन्य तीन तत्त्वों को, जिनके नाम मन, बुद्धि तथा अहंकार हैं, भौतिकतावादी उपेक्षित रखते हैं। दार्शनिक भी, जो मानसिक कार्यकलापों से संबंध रखते हैं, पूर्णज्ञानी नहीं है, क्योंकि वे परम उद्गम कृष्ण को नहीं जानते। मिथ्या अहंकार– ‘मैं हूँ’ तथा ‘यह मेरा है’ – जो कि संसार का मूल कारण है इसमें विषयभोग की दस इन्द्रियों का समावेश है। बुद्धि महत्तत्त्व नामक समग्र भौतिक सृष्टि की सूचक है। अतः भगवान् की आठ विभिन्न शक्तियों से जगत् के चौबीस तत्त्व प्रकट हैं, जो नास्तिक सांख्यदर्शन के विषय हैं। ये मूलतः कृष्ण की शक्तियों की उपशाखाएँ हैं और उनसे भिन्न हैं, किन्तु नास्तिक सांख्य दार्शनिक अल्पज्ञान के कारण यह नहीं जान पाते कि कृष्ण समस्त कारणों के कारण हैं। जैसा कि भगवद्गीता में कहा गया है, सांख्यदर्शन की विवेचना का विषय कृष्ण की बहिरंगा शक्ति का प्राकट्य है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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