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श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
गीता का परिमाण और पूर्ण शरणागति
जब गुरु का शिष्य में शक्तिपात होता है, तब शिष्य में गुरु का अवतार हो जाता है अर्थात शिष्य गुरु का ही स्वरूप हो जाता है। ‘अद्वैतामृतवल्लरी’ नामक वेदान्तग्रंथ में चार प्रकार से शक्तिपात होने की बात आयी है-
भगवान की तो स्फुरणामात्र से ही जीव का कल्याण हो सकता है, पर गीता को देखने से पता चलता है कि भगवान का अर्जुन में उपर्युक्त चारों ही प्रकार से शक्तिपात हुआ है। भगवान और अर्जुन का संबंध ही स्पर्श से होने वाला शक्तिपात है। दूसरे अध्याय के सातवें श्लोक में अर्जुन ने भगवान से अठारहवें अध्याय के तिहत्तरवें श्लोक में भगवान ने अर्जुन से विशेष संबंध जोड़ा है। दूसरी बात, गीता ‘श्रीकृष्णार्जुनसंवाद’ है और जहाँ संवाद होता है, वहाँ संबंध तो रहता ही है। भगवान ने अर्जुन की शंकाओं का समाधान किया- यह शब्द से होने वाला शक्तिपात है। कृपा दृष्टि के द्वारा प्रकट होती है। भगवान अर्जुन को कृपापूर्वक देखते हैं- यह दृष्टि से होने वाला शक्तिपात है। भगवान अर्जुन का कल्याण करना चाहते हैं- यह मन से होने वाला शक्तिपात है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ उदयपुर में पिचोला नामक एक प्रसिद्ध सरोवर है। एक बार एक संत वहाँ गये और वहाँ के नाविकों से उन्होंने कछुई के याद करने मात्र से अंडों का पोषण होने के की सत्यता का पता लगाया। नाविकों ने इस बात की पुष्टि की। वहाँ रेती में एक कछुई के अंडे दबे पड़े थे। जिसका पता नाविकों को था। नाविकों ने पानी में अपना जाल फैलाया। जब उस जाल में वह कछुई फँस गयी, तब उन संत ने जाकर देखा कि उसके अंडे गल गये थे। इससे पता चलता कि जाल में फँसने से जब घबराहट में कछुई का स्मरण छूट गया, तब उसके अंडे गल गए।
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