|
प्रथम अध्याय
व्याख्या- ‘भगवान् भीष्मश्च’- आप और पितामह भीष्म- दोनों ही बहुत विशेष पुरुष हैं। आप दोनों के समकक्ष संसार में तीसरा कोई भी नहीं है। अगर आप दोनों में से कोई एक भी अपनी पूरी शक्ति लगाकर युद्ध करे, तो देवता, यक्ष, राक्षस, मनुष्य आदि में ऐसा कोई भी नहीं है, जो कि आपके सामने टिक सके। आप दोनों के पराक्रम की बात जगत में प्रसिद्ध ही है। पितामह भीष्म तो आबाल ब्रह्मचारी है, और इच्छामृत्यु हैं अर्थात उनकी इच्छा के बिना उन्हें कोई मार ही नहीं सकता।
[ महाभारत- युद्ध में द्रोणाचार्य धृष्टद्युम्र के द्वारा मारे गए और पितामह भीष्म ने अपनी इच्छा से ही सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने प्राणों का त्याग कर दिया।]
'कर्णश्च'- कर्ण तो बहुत ही शूरवीर है। मुझे तो ऐसा विश्वास है कि वह अकेला ही पांडव- सेना पर विजय प्राप्त कर सकता है। उसके सामने अर्जुन भी कुछ नहीं कर सकता। ऐसा वह कर्ण भी हमारे पक्ष में है।
[कर्ण महाभारत- युद्ध में अर्जुन के द्वारा मारे गये।]
कृपश्च समितिञ्जयः- कृपाचार्य की बात ही क्या है! वे तो चिरंजीवी है,[2]
हमारे परम हितैषी हैं और संपूर्ण पांडव- सेना पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। यद्यपि यहाँ द्रोणाचार्य और भीष्म के बाद ही दुर्योधन को कृपाचार्य का नाम लेना चाहिए था; परंतु दुर्योधन को कर्ण पर जितना विश्वास था, उतना कृपाचार्य पर नहीं था। इसलिए कर्ण का नाम तो भीतर से बीच में ही निकल पड़ा। द्रोणाचार्य और भीष्म कहीं कृपाचार्य का अपमान न समझ लें, इसलिए दुर्योधन कृपाचार्य को ‘संग्रामविजयी’ विशेषण देकर उनको प्रसन्न करना चाहता है।
अश्वत्थामा- ये भी चिरंजीवी हैं और आपके ही पुत्र हैं। ये बड़े शूरवीर हैं। उन्होंने आपसे ही अस्त्र-शस्त्र की विद्या सीखी है। अस्त्र-शस्त्र की कला में ये बड़े चतुर हैं।
विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च- आप यह न समझें कि केवल पांडव ही धर्मात्मा हैं, हमारे पक्ष में भी मेरा भाई विकर्ण बड़ा धर्मात्मा और शूरवीर है। ऐसे ही हमारे प्रतिमाह शांतनु के भाई बाह्लीक के पौत्र तथा सोमदत्त के पुत्र भूरिश्रवा भी बड़े धर्मात्मा हैं। इन्होंने बड़ी-बड़ी दक्षिणा वाले अनेक यज्ञ किए हैं। ये बड़े शूरवीर और महारथी हैं।
[युद्ध में विकर्ण भीम के द्वारा और भूरिश्रवा सात्यिक के द्वारा मारे गये।]
यहाँ इन शूरवीर के नाम लेने में दुर्योधन का यह भाव मालूम देता है कि हे आचार्य! हमारी सेना में आप, भीष्म, कर्ण, कृपाचार्य आदि जैसे महान पराक्रमी शूरवीर हैं, ऐसे पांडवों की सेना में देखने में नहीं आते। हमारी सेना में कृपाचार्य और अश्वत्थामा- ये दो चिरंजीवी हैं, जबकि पांडवों की सेना में ऐसा एक भी नहीं है। हमारी सेना में धर्मात्माओं की भी कमी नहीं है। इसलिए हमारे लिये डरने की कोई बात नहीं है।
|
|