श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
प्रथम अध्याय
व्याख्या- ‘धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे’- कुरुक्षेत्र में देवताओं ने यज्ञ किया था। राजा कुरु ने भी यहाँ तपस्या की थी। यज्ञादि धर्ममय कार्य होने से तथा राजा कुरु की तपस्याभूमि होने से इसको धर्मभूमि कुरुक्षेत्र कहा गया है।
यहाँ ‘धर्मक्षेत्रे’ और ‘कुरुक्षेत्रे’ पदों में ‘क्षेत्र’ शब्द देने में धृतराष्ट्र का अभिप्राय है कि यह अपनी कुरुवंशियों की भूमि है। यह केवल लड़ाई की भूमि ही नहीं है, प्रत्युत तीर्थभूमि भी है, जिसमें प्राणी जीते-जी पवित्र कर्म करके अपना कल्याण कर सकते हैं। इस तरह लौकिक और पारलौकिक सब तरह का लाभ हो जाय- ऐसा विचार करके एवं श्रेष्ठ पुरुषों की सम्मति लेकर ही युद्ध के लिए यह भूमि चुनी गयी है।
संसार में प्रायः तीन बातों को लेकर लड़ाई होती है- भूमि, धन और स्त्री। इन तीनों में भी राजाओं का आपस में लड़ना मुख्यतः जमीन को लेकर होता है। यहाँ ‘कुरुक्षेत्रे’ पद देने का तात्पर्य भी जमीन को लेकर लड़ने में है। कुरुवंश में धृतराष्ट्र और पाण्डु के पुत्र सब एक हो जाते हैं। कुरुवंशी होने से दोनों का कुरुक्षेत्र में अर्थात राजा कुरु की जमीन पर समान हक लगता है। इसलिए[3] दोनों जमीन के लिए लड़ाई करने आए हुए हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वैशम्पायन और जनमेजय के संवाद के अन्तर्गत 'धृतराष्ट्र-संजय-संवाद' है और धृतराष्ट्र तथा संजय के संवाद अन्तर्गत 'श्रीकृष्णार्जुन-संवाद' है।
- ↑ संजय का जन्म गवल्गण नामक सूत से हुआ था। ये मुनियों के समान ज्ञानी और धर्मात्मा थे- ‘सञ्जयो मुनकल्पस्तु जज्ञे सुतो गवल्गणात्’ (महाभारत, आदि. 63|97)। ये धृतराष्ट्र के मंत्री थे।
- ↑ कौरवों द्वारा पांडवों को उनकी जमीन न देने के कारण
- ↑ गीता 16।24
- ↑ यावद्धि तीक्ष्णया सूच्या विध्येदग्रेण केशव। तावदप्यपरित्याज्यं भूमेर्न: प्रति।। (महाभारत, उद्योग. 127|25)
संबंधित लेख
श्लोक संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज