श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
अष्टादश अध्याय
कई बार आत्महत्या करने की चेष्टा करने पर भी मनुष्य बच जाता है, मरता नहीं। इसका कारण यह है कि उसका दूसरे मनुष्य के प्रारब्ध के साथ संबंध जुड़ा हुआ रहता है; अतः उसके प्रारब्ध के कारण वह बच जाता है। जैसे, भविष्य में किसी का पुत्र होने वाला है और वह आत्महत्या करने का प्रयास करे तो उस (आगे होने वाले) लड़के का प्रारब्ध उसको मरने नहीं देगा। अगर उस व्यक्ति के द्वारा भविष्य में कोई विशेष अच्छा काम होने वाला हो, लोगों का उपकार होने वाला हो अथवा इसी जन्म में, इसी शरीर में प्रारब्ध का कोई उत्कट भोग (सुख-दुःख) आने वाला हो, तो आत्महत्या का प्रयास करने पर भी वह मरेगा नहीं।
6. एक आदमी ने दूसरे आदमी को मार दिया तो यह उसने पिछले जन्म के वैर का बदला लिया और मरने वाले ने पुराने कर्मों का फल पाया, दंड देना शासक का काम है, सर्वसाधारण नहीं। एक आदमी को दस बजे फाँसी मिलनी है। एक दूसरे आदमी ने उस (फाँसी की सजा पाने वाले) आदमी को जल्लादों के हाथों से छुड़ा लिया और ठीक दस बजे उसे कत्ल कर दिया। ऐसी हालत में उस कत्ल करने वाले आदमी को भी फाँसी होगी कि यह आज्ञा तो राज्य ने जल्लादों को दी थी, पर तुम्हें किसने आज्ञा दी थी?
मारने वाले को यह याद नहीं है कि मैं पूर्वजन्म का बदला ले रहा हूँ, फिर भी मारता है तो यह उसका दोष है। दूसरे को मारने का अधिकार किसी को भी नहीं है। मरना कोई भी नहीं चाहता। दूसरे को मारना अपने विवेक का अनादर है। मनुष्यमात्र को विवेकशक्ति प्राप्त है और उस विवेक के अनुसार अच्छे या बुरे कार्य करने में वह स्वतंत्र है। अतः विवेक का अनादर करके दूसरे को मारना अथवा मारने की नीयत रखना दोष है।
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