श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
सप्तदश अध्याय
भोजन के अंत में आचमन के बाद ये श्लोक पढ़ने चाहिए- अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभवः । फिर भोजन के पाचन के लिए ‘अहं वैश्वानरो भूत्वा.’[3] श्लोक पढ़ते हुए मध्यमा अंगुली से नाभि को धीरे-धीरे घुमाना चाहिए। संबंध- पहले यजन-पूजन और भोजन के द्वारा जो श्रद्धा बतायी, उससे शास्त्रविधि का अज्ञतापूर्वक त्याग करने वालों की स्वाभाविक निष्ठा- रुचि की तो पहचान हो जाती है; परंतु जो मनुष्य व्यापार, खेती आदि जीविका के कार्य करते हैं अथवा शास्त्रविहित यज्ञादि शुभकर्म करते हैं, उनकी स्वाभाविक रुचि की पहचान कैसे हो- यह बताने के लिए यज्ञ, तप और दान के तीन-तीन भेदों का प्रकरण आरंभ करते हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 5।25, 12।4
- ↑ गीता 3।14-15
- ↑ गीता 15:14
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