श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
चतुर्दश अध्याय
श्रीमद्भागवत में गुणों को बढ़ाने वाले दस हेतु बताये गये हैं- आगमोऽपः प्रजा देशः कालः कर्म च जन्म च। ‘शास्त्र, जल (खान-पान), प्रजा (संग), स्थान, समय, कर्म, जन्म, ध्यान, मंत्र और संसार- ये दस वस्तुएँ यदि सात्त्विक हों तो सत्त्वगुण की, राजसी हों तो रजोगुण की और तामसी हों तो तमोगुण की वृद्धि करती हैं।’ विशेष बात अंत समय में रजोगुण की तात्कालिक वृत्ति के बढ़ने पर मरने वाला मनुष्यलोक में जन्म लेता है[2] और रजोगुण की प्रधानता वाला मनुष्य मरकर फिर इस मनुष्य लोक में ही आता है[3]- इन दोनों बातों से यही सिद्ध होता है कि इस मनुष्यलोक के सभी मनुष्य रजोगुण वाले ही होते हैं; सत्त्वगुण और तमोगुण इनमें नहीं होता। अगर वास्तव में ऐसी ही बात है, तो फिर सत्त्वगुण की तात्कालिक वृत्ति के बढ़ने पर मरने वाला[4] और सत्त्वगुण में स्थित रहने वाला मनुष्य ऊँचे लोकों में जाता है;[5] तथा तमोगुण की तात्कालिक वृत्ति के बढ़ने पर मरने वाला[6] और तमोगुण में स्थित रहने वाला मनुष्य अधोगति में जाता है;[7] सत्त्व, रज और तम- ये तीनों गुण अविनाशी देही को देह में बाँध देते हैं;[8] यह सारा संसार तीनों गुणों से मोहित है;[9] सात्त्विक, राजस और तामस- ये तीन प्रकार के कर्ता कहे जाते हैं;[10] यह संपूर्ण त्रिलोकी की त्रिगुणात्मक है[11], आदि बातें भगवान ने कैसे कही हैं? इस शंका का समाधान यह है कि ऊर्ध्वगति में सत्त्व-गुण की प्रधानता तो है, पर साथ में रजोगुण-तमोगुण भी रहते हैं। इसलिए देवताओं के भी सात्त्विक, राजस और तामस स्वभाव होते हैं। अतः सत्त्वगुण की प्रधानता होने पर भी उसमें अवान्तर भेद रहते हैं। ऐसे ही मध्यगति में रजोगुण की प्रधानता होने पर भी साथ में सत्त्वगुण-तमोगुण रहते हैं। इसलिए मनुष्यों के भी सात्त्विक, राजस और तामस स्वभाव होते हैं। अधोगति में तमोगुण की प्रधानता है, पर साथ में सत्त्वगुण-रजोगुण भी रहते हैं। इसलिए पशु, पक्षी आदि में तथा भूत, प्रेत, गुह्यक आदि में और नरकों के प्राणियों में भी भिन्न-भिन्न स्वभाव होता है। कई सौम्य स्वभाव के होते हैं, कई मध्यम स्वभाव के होते हैं और कई क्रूर स्वभाव के होते हैं। तात्पर्य है कि जहाँ किसी भी गुण के साथ संबंध हैं, वहाँ तीनों गुण रहेंगे ही। इसलिए भगवान ने[12] कहा है कि त्रिलोकी में ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है, जो तीनों गुणों से रहित हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 11।13।4
- ↑ गीता 14:15
- ↑ गीता 14:18
- ↑ गीता 14:14
- ↑ गीता 14:18
- ↑ गीता 14:15
- ↑ गीता 14:18
- ↑ गीता 14:5
- ↑ गीता 7:13
- ↑ गीता 18।26-28
- ↑ गीता 18:40
- ↑ गीता 18:40 में
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