श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
चतुर्दश अध्याय
अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च प्रमादो मोह एव च । अर्थ- हे कुरुनन्दन! तमोगुण के बढ़ने पर अप्रकाश, अप्रवृत्ति, प्रमाद और मोह- ये वृत्तियाँ भी पैदा होती हैं। व्याख्या- ‘अप्रकाशः’- सत्त्वगुण की प्रकाश (स्वच्छता) वृत्ति को दबाकर जब तमोगुण बढ़ जाता है, तब इंद्रियाँ और अंतःकरण में स्वच्छता नहीं रहती। इंद्रियाँ और अंतःकरण में जो समझने की शक्ति है, वह तमोगुण के बढ़ने पर लुप्त हो जाती है अर्थात पहली बात तो यह रहती नहीं और नया विवेक पैदा होता नहीं। इस वृत्ति को यहाँ ‘अप्रकाश’ कहकर इसका सत्त्वगुण की वृत्ति ‘प्रकाश’ के साथ विरोध बताया गया है। ‘अप्रवृत्तिः’- रजोगुण की वृत्ति ‘प्रवृत्ति’ को दबाकर जब तमोगुण बढ़ जाता है, तब कार्य करने का मन नहीं करता। निरर्थक बैठे रहना अथवा पड़े रहने का मन करता है। आवश्यक कार्य को करने की भी रुचि नहीं होती। यह सब ‘अप्रवृत्ति’ वृत्ति का काम है। ‘प्रमादः’- न करने लायक काम में लग जाना और करने लायक काम को न करना, तथा जिन कामों को करने से न पारमार्थिक उन्नति होती है, न सांसारिक उन्नति होती है, न समाज का कोई काम होता है और जो शरीर के लिए भी आवश्यक नहीं है- ऐसे बीड़ी-सिगरेट, ताश-चौपड़, खेल-तमाशे आदि कार्यों में लग जाना ‘प्रमाद’ वृत्ति का काम है। ‘मोहः’- तमोगुण के बढ़ने पर जब ‘मोह’ वृत्ति आ जाती है, तब भीतर में विवेक-विरोधी भाव पैदा होने लगते हैं। क्रिया के करने और न करने में विवक काम नहीं करता, प्रत्युत मूढ़ता छायी रहती है, जिससे पारमार्थिक और व्यावहारिक काम करने की सामर्थ्य नहीं रहती। ‘एव च’- इन पदों से अधिक निद्रा लेना, अपने जीवन का समय निरर्थक नष्ट करना, धन निरर्थक नष्ट करना आदि जितने भी निरर्थक कार्य हैं, उन सबको ले लेना चाहिए। ‘तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरुनन्दन’- ये सब बढ़े हुए तमोगुण के लक्षण हैं अर्थात जब ये अप्रकाश, अप्रवृत्ति आदि दिखाई दें, तब समझना चाहिए कि सत्त्वगुण और रजोगुण को दबाकर तमोगुण बढ़ा है। सत्त्व, रज और तम- ये तीनों ही गुण सूक्ष्म होने से अतीन्द्रिय हैं अर्थात इंद्रियाँ और अंतःकरण के विषय नहीं हैं। इसलिए ये तीनों गुण साक्षात दीखने में नहीं आते, इनके स्वरूप का साक्षात ज्ञान नहीं होता। इन गुणों का ज्ञान, इनकी पहचान तो वृत्तियों से ही होती है; क्योंकि वृत्तियाँ स्थूल होने से वे इंद्रियाँ और अंतःकरण का विषय हो जाती हैं। |
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