श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
त्रयोदश अध्याय
परंतु प्रकाश होते ही ये सब भय मिट जाते हैं। ऐसे ही सर्वत्र परिपूर्ण प्रकाश स्वरूप परमात्मा से विमुक होने पर अंधकार स्वरूप संसार की स्वतंत्र सत्ता सर्वत्र दीखने लग जाती है और तरह-तरह के भय सताने लग जाते हैं। परंतु वास्तविक बोध होने पर संसार की स्वतंत्र सत्ता नहीं रहती और सब भय मिट जाते हैं। एक प्रकाश स्वरूप परमात्मा ही शेष रह जाता है। अंधेरे को मिटाने के लिए तो प्रकाश को लाना पड़ता है, परमात्मा को कहीं से लाना नहीं पड़ता। वह तो सब देश, काल, वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति आदि में ज्यों-का-त्यों परिपूर्ण है। इसलिए संसार से सर्वथा संबंध-विच्छेद होने पर उसका अनुभव अपने-आप हो जाता है। |
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