श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
त्रयोदश अध्याय
यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोकमिमं रविः । अर्थ- हे भरतवंशोद्भव अर्जुन! जैसे एक ही सूर्य संपूर्ण संसार को प्रकाशित करता है, ऐसे ही क्षेत्री (क्षेत्रज्ञ, आत्मा) संपूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित करता है। व्याख्या- ‘यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोकमिमं रविः’- नेत्रों से दीखने वाले इस संपूर्ण संसार को, संसार के मात्र पदार्थों को एक सूर्य ही प्रकाशित करता है और संसार की सब क्रियाएँ सूर्य के प्रकाश के अंतर्गत होती हैं; परंतु सूर्य में ‘मैं सबको प्रकाशित करता हूँ’ ऐसा कर्तृत्व नहीं होता। जैसे- सूर्य के प्रकाश में ही ब्राह्मण वेदपाठ करता है और शिकारी पशुओं को मारता है, पर सूर्य का प्रकाश वेदपाठ और शिकाररूपी क्रियाओं को करने-करवाने में कारण नहीं बनता। यहाँ ‘लोक’ शब्द मात्र संसार (चौदह भुवनों) का वाचक है। कारण कि मात्र संसार में जो कुछ भी[1] प्रकाश है, वह सब सूर्य का ही है। ‘क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत’– सूर्य की तरह एक ही क्षेत्री (क्षेत्रज्ञ, आत्मा) संपूर्ण क्षेत्रों को प्रकाशित करता है अर्थात सब क्षेत्रों में करना-करवाना रूप संपूर्ण क्रियाएँ क्षेत्री के प्रकाश में ही होती हैं; परंतु क्षेत्री उन क्रियाओं को करने-करवाने में कारण नहीं बनता। सूर्य तो केवल स्थूल संसार को ही प्रकाशित करता है और उसके प्रकाश में स्थूल संसार की ही क्रियाएँ होती हैं, पर क्षेत्री केवल स्थूल क्षेत्र (संसार) को ही प्रकाशित नहीं करता, प्रत्युत वह स्थूल, सूक्ष्म और कारण- तीनों क्षेत्रों को प्रकाशित करता है तथा उसके प्रकाशक में स्थूल, सूक्ष्म और कारण- तीनों शरीरों की संपूर्ण क्रियाएँ होती हैं। जैसे संपूर्ण संसार को प्रकाशित करने पर भी सूर्य में (सबको प्रकाशित करने का) अभिमान नहीं आता और तरह-तरह की क्रियाओं को प्रकाशित करने पर भी सूर्य में नानाभेद नहीं आता, ऐसे ही संपूर्ण क्षेत्रों को प्रकाशित करने, उनको सत्ता-स्फूर्ति देने पर भी क्षेत्री में अभिमान, कर्तृत्व नहीं आता और तरह-तरह की क्रियाओं को प्रकाशित करने पर भी क्षेत्री में नानाभेद नहीं आता। वह क्षेत्री सदा ही ज्यों का त्यों निर्लिप्त, असंग रहता है। कोई भी क्रिया तथा वस्तु बिना आश्रय के नहीं होती और कोई भी प्रतीति बिना प्रकाश (ज्ञान) के नहीं होती। क्षेत्री संपूर्ण क्रियाओं, वस्तुओं और प्रतीतियों का आश्रय और प्रकाशक है। संबंध- अब भगवान क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के विभाग को जानने का फल बताते हुए प्रकरण का उपसंहार करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ चंद्रमा, तारे, अग्नि, मणि, जड़ी-बूटी आदि में
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