श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
त्रयोदश अध्याय
केवल निर्जन वन आदि में जाकर और अकेले पड़े रहकर यह मान लेना कि ‘मैं एकान्त स्थान में हूँ’, वास्तव में भूल ही है; क्योंकि संपूर्ण संसार का बीज यह शरीर तो साथ में है ही। जब तक इस शरीर के साथ संबंध है, तब तक संपूर्ण संसार के साथ संबंध बना ही हुआ है। अतः एकान्त स्थान में जाने का लाभ तभी है, जब देहाभिमान के नाश का उद्देश्य मुख्य हो। वास्तविक एकान्त वह है, जिसमें एक तत्त्व के सिवाय दूसरी कोई चीज न उत्पन्न हुई, न है और न होगी। जिसमें न इन्द्रियाँ हैं, न प्राण हैं, न मन है और न अंतःकरण है। जिसमें न स्थूल शरीर है, न सूक्ष्मशरीर है और न कारण शरीर है। जिसमें न व्यष्टि शरीर है और न समष्टि संसार है। जिसमें केवल एक तत्त्व-ही-तत्त्व है अर्थात एक तत्त्व के सिवाय और कुछ है ही नहीं। कारण कि एक परमात्मतत्त्व के सिवाय पहले भी कुछ नहीं था और अंत में भी कुछ नहीं रहेगा। बीच में जो कुछ प्रतीत हो रहा है, वह भी प्रतीति के द्वारा ही प्रतीत हो रहा है अर्थात जिनसे संसार प्रतीत हो रहा है, वे इंद्रियाँ अंतःकरण आदि भी स्वयं प्रतीति ही हैं। अतः प्रतीति के द्वारा ही प्रतीति हो रही है। हमारा (स्वरूप का) संबंध शरीर और अंतःकरण के साथ कभी हुआ ही नहीं; क्योंकि शरीर और अंतःकरण प्रकृति से अतीत है। इस प्रकार अनुभव करना ही वास्तव में ‘विवेकदेशसेवित्व’ है। ‘अरतिर्जनसंसदि’- साधारण मनुष्य समुदाय में प्रीति, रुचि न हो अर्थात कहाँ क्या हो रहा है, कब क्या होगा, कैसे होगा आदि-आदि सांसारिक बातों को सुनने की कोई भी इच्छा न हो तथा समाचार सुनाने वाले लोगों से मिलें, कुछ समाचार प्राप्त करें- ऐसी किञ्चिन्मात्र भी इच्छा, प्रीति न हो। परंतु हमारे से कोई तत्त्व की बात पूछना चाहता है, साधन के विषय में चर्चा करना चाहता है, उससे मिलने के लिए मन में जो इच्छा होती है, वह ‘अरतिर्जनसंसदि’ नहीं है। ऐसे ही जहाँ तत्त्व की बात होती हो, आपस में तत्त्व का विचार होता हो अथवा हमारी दृष्टि में कोई परमात्मतत्त्व को जानने वाला हो, ऐसे पुरुषों के संग की जो रुचि होती है, वह जनसमुदाय में रुचि नहीं कहलाती, प्रत्युत वह तो आवश्यक है। कहा भी गया है- संगः सर्वात्मना त्याज्यः स चेत्यंक्तु न शक्यते । अर्थात आसक्तिपूर्वक किसी का भी संग नहीं करना चाहिए; परंतु अगर ऐसी असंगता न होती हो, तो श्रेष्ठ पुरुषों का संग करना चाहिए। कारण कि श्रेष्ठ पुरुषों का संग असंगता प्राप्त करने की औषध है। |
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