श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
एकादश अध्याय
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व । अर्थ- हे सर्व! आपको आगे से नमस्कार हो! पीछे से नमस्कार हो! सब ओर से ही नमस्कार हो! हे अनन्तवीर्य! अमितविक्रम वाले आपने सबको समावृत कर रखा है; अतः सब कुछ आप ही हैं। व्याख्या- ‘नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व’- अर्जुन भयभीत हैं। मैं क्या बोलूँ- यह उनकी समझ में नहीं आ रहा है। इसलिए वे आगे से, पीछे से सब ओर से अर्थात दसों दिशाओं में केवल नमस्कार-ही-नमस्कार कर रहे हैं। ‘अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वम्’- ‘अनन्तवीर्य’ कहने का तात्पर्य है कि आप तेज, बल आदि से भी अनन्त हैं; और ‘अमितविक्रम’ कहने का तात्पर्य है कि आपके पराक्रमयुक्त संरक्षण आदि कार्य भी असीम हैं। इस तरह आपकी शक्ति भी अनन्त है और पराक्रम भी अनन्त है। ‘सर्वं समाप्नोषि तऽतो सर्वः’- आपने सबको समावृत कर रखा है अर्थात संपूर्ण संसार आपके अंतर्गत है। संसार का कोई भी अंश ऐसा नहीं है, जो कि आपके अंतर्गत न हो। अर्जुन एक बड़ी अलौकिक, विलक्षण बात देख रहे हैं कि भगवान अनन्त सृष्टियों में परिपूर्ण, व्याप्त हो रहे हैं, और अनन्त सृष्टियाँ भगवान के किसी अंश में हैं। संबंध- अब आगे के दो श्लोकों में अर्जुन भगवान से प्रार्थना करते हुए क्षमा माँगते हैं। |
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