श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
एकादश अध्याय
एतच्छुत्वा वचनं केशवस्य कृताञ्जलिर्वेपमानः किरीटी । संजय बोले- भगवान केशव का यह वचन सुनकर भय से कम्पित हुए किरीटी अर्जुन हाथ जोड़कर नमस्कार करके और अत्यंत भयभीत होकर फिर प्रणाम करके सगद्गदं वाणी से भगवान कृष्ण से बोले। व्याख्या- ‘एतच्छुत्वा वचनं केशवस्य कृताञ्जलिर्वेपमानः किरीटी’- अर्जुन तो पहले से भयभीत थे ही, फिर भगवान ने ‘मैं काल हूँ, सबको खा जाऊँगा’- ऐसा कहकर मानो डरे हुए को डरा दिया। तात्पर्य है कि ‘कालोऽस्मि’- यहाँ से लेकर ‘मया हतांस्त्वं जहि’- यहाँ तक भगवान ने नाश-ही-नाश की बात बतायी। इसे सुनकर अर्जुन डर के मारे काँपने लगे और हाथ जोड़कर बार-बार नमस्कार करने लगे। अर्जुन ने इंद्र की सहायता के लिए जब काल, खञ्ज आदि राक्षसों को मारा था, तब इंद्र ने प्रसन्न होकर अर्जुन को सूर्य के समान प्रकाश वाला एक दिव्य ‘किरीट’ (मुकुट) दिया था। इसी से अर्जुन का नाम ‘किरीटी’ पड़ गया।[1] यहाँ ‘किरीटी’ कहने का तात्पर्य है कि जिन्होंने बड़े-बड़े राक्षसों को मारकर इंद्र की सहायता की थी, वे अर्जुन भी भगवान के विराटरूप को देखकर कम्पित हो रहे हैं। ‘नमस्कृत्वा भूय एवाह कृष्णं सगद्गदं भीतभीतः प्रणम्य’- काल सबका भक्षण करता है; किसी को भी छोड़ता नहीं। कारण कि यह भगवान की संहारशक्ति है, जो हरदम संहार करती ही रहती है। इधर अर्जुन ने जब भगवान के अत्युग्र विराटरूप को देखा तो उनको लगा कि भगवान काल के भी काल- महाकाल हैं। इनके सिवाय दूसरा कोई भी काल से बचने वाला नहीं है। इसलिए अर्जुन भयभीत होकर भगवान को बार-बार प्रणाम करते हैं। ‘भूयः’ कहने का तात्पर्य है कि पहले पंद्रहवें से इकतीसवें श्लोक तक अर्जुन ने भगवान की स्तुति और नमस्कार किया, अब फिर भगवान की स्तुति और नमस्कार करते हैं। हर्ष से भी वाणी गद्गद होती है और भय से भी। यहाँ भय का विषय है। अगर अर्जुन बहुत ज्यादा भयभीत होते तो वे बोल ही न सकते। परंतु अर्जुन गद्गद वाणी से बोलते हैं। इससे सिद्ध होता है कि वे इतने भयभीत नहीं हैं। संबंध- अब आगे के श्लोक से अर्जुन भगवान की स्तुति करना आरंभ करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पुरा शक्रेण मे दत्तं युध्यतो दानवर्षभैः। किरीटं मूर्ध्नि सूर्याभं तेनाहुर्मा किरीटिनम् ।। (महा. विराट. 44।17)
संबंधित लेख
श्लोक संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज