श्रीमद्भगवद्गीता साधक-संजीवनी हिन्दी-टीका -स्वामी रामसुखदास
एकादश अध्याय
लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्ताल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भिः । अर्थ- आप अपने प्रज्वलित मुखों द्वारा संपूर्ण लोकों का ग्रसन करते हुए उन्हें चारों ओर से बार-बार चाट रहे हैं; और हे विष्णो! आपका उग्र प्रकाश अपने तेज से संपूर्ण जगत को परिपूर्ण करके सबको तपा रहा है। व्याख्या- ‘लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्ताल्लोकान् समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भिः’- आप संपूर्ण प्राणियों का संहार कर रहे हैं और कोई इधर-उधर न चला जाए, इसलिए बार-बार जीभ के लपेटे से अपने प्रज्वलित मुखों में लेते हुए उनका ग्रसन कर रहे हैं। तात्पर्य है कि कालरूप भगवान की जीभ के लपेट से कोई भी प्राणी बच नहीं सकता। ‘तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रं भासस्तवोग्राः प्रतपन्ति विणो’- विराट रूप का भगवान का तेज बड़ा उग्र है। वह उग्र तेज संपूर्ण जगत में परिपूर्ण होकर सबको संतप्त कर रहा है, व्यथित कर रहा है। संबंध- विराट रूप भगवान अपने विलक्षण-विलक्षण रूपों का दर्शन कराते ही चले गए। उनके भयंकर और अत्यंत उग्ररूप के मुखों में संपूर्ण प्राणी और दोनों पक्षों के योद्धा देखकर अर्जुन बहुत घबरा गए। अतः अत्यंत उग्ररूपधारी भगवान का वास्तविक परिचय जानने के लिए अर्जुन प्रश्न करते हैं। |
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